Friday 31 October 2014

Names 401 t0 500



*(401) विविधाकारा - विविध आकार या रूपोंवाली मा ।

*(402) विद्याविद्यास्वरूपिणी - विद्या और अविद्या का स्वरूप मा ।

*(403) महाकामेशनयनकुमुदाल्हादकौमुदी - भक्तके कुमुद जैसे आखोंको अपने दर्शनमात्रसे आनंद देकर खिलाने वाली मा |

*(404) भक्तहार्दतमोभेदभानुमदभानुसंततिः - भक्तोंके अविद्यारूपी अन्धकारको भगानेके लिये सूर्य रूपी मा

*(405) शिवदूती - भगवान श्री शंकरको दूत बनाके कल्याण और शांतिका संदेश भेजनेवाली मा ।

*(406) शिवाराध्या - भगवान श्री शंकरसे आराधित मा ।

*(407) शिवमूर्ति - भगवान श्री शंकरके रूपमे विराजित मा ।

*(408) शिवकरी - कल्याण करनेवाली मा ।

*(409) शिवप्रिया - भगवान श्री शंकरको प्रिय मा ।

*(410) शिवपरा - भगवान श्री शंकरसेभी परे मा।

*(411) शिष्टेष्टा - सदाचार, सदविचार और शिष्टचारसे प्रसन्न होनेवाली मा ।

*(412) शिष्टपूजिता - विद्वान, सदाचारी और महात्माओंसे पूजीत मा ।

*(413) अप्रमेया - किसीभी तर्क, शास्त्र या प्रमाणसे जाननेमे न आनेवाली मा ।

*(414) स्वप्रकाशा - अपनेही प्रकाशमे आप स्थित मा ।

*(415) मनोवाचामगोचरा - मन और वाणिसे अगोचर मा ।

*(416) चिच्छक्ति - अविद्याका नाश करनेवाली चैतन्य शक्तिरूप मा ।

*(417) चेतनरूपा - भक्तके अन्दर चेतनरूप मा ।

*(418) जडशक्ति - निर्जीव जगत और वस्तुओंकी शक्ति जो चैतन्यकोभी क्षोभित कर डालती है उस शक्ति स्वरूप मा ।

*(419) जडात्मिका - निर्जीवोंकी आत्मा स्वरूप मा ।

*(420) गायत्री - गायत्री मन्त्रस्वरूप मा ।

*(421) व्याह्रती - भक्तके पुकारनेपर या बुलानेपर आनेवाली मा ।

*(422) सन्ध्या - गायत्री सन्ध्या का स्वरूप मा ।

*(423) द्विजवृंदनिषेविता - ब्राह्मण, वैश्य आदि समूहोंसे पूजित होनेवाली मा ।

*(424) तत्वासना - जिनके आसनके नीचे सब तत्व है या तत्वोंके आसनपर आरूढ होनेवाली मा ।

*(425 - 426) तत् , त्वम - तत्वमसी महावाक्यका चिंतन करते समय जीवात्मा अपनेको त्वम समझता है और अपनी आत्माको छोडकर बाकी सबकुछ तत् समझता है और तत् और त्वम की एकताको सिद्द करता है उसी प्रयासमे तत् भी मा है ओर त्वम भी मा है और एकता सिध्द करता है । उसी प्रयोगमे तत् भी मा है और त्वम भी मा है और एकतासिध्द भी मा ही है, यही तत् स्वरूप मा है और एकता स्वरूप मा है ।

*(427) अयी - प्रेमके जोशसे पुकारसे बुलाई जानेवाली मा । तत् - सर्वस्व, त्वं - मा, अयी - सर्व माई स्वरूप है, माई सबमें है, और सब माईमें है, उसके अस्तित्वके सिवा कुछ भी नही है ।

*(428) पंचकोषांतरस्थिता - अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय इन पाच कोषोमें विराजित मा ।

*(429) निःसीममहिमा - जिसकी महिमाकी सीमाही नही वह मा ।

*(430) नित्ययौवना - सदा जवानीसे भरपूर मा ।

*(431) मदशालिनी -मद और आनंदसे युक्त मा ।

*(432) मदघूर्णितरक्ताक्षी -मदके आनंदसे भरी हुई रक्तवर्ण आखोवाली मा ।

*(433) मदपाटलगण्डभूः - मद और लज्जसे जिनका मुख और गाल गुलाबी रंगका हो गया है वह मा ।

*(434) चंदनद्रवदिग्धांगी - चंदनका लेप जिनके शरीरपर है वह मा ।

*(435) चाम्पेयकुसुमप्रिया - जिन्हे चंपकका फुल प्रिय है वह मा ।

*(436) कुशला - सब प्रकारके कार्योमे, व्यवहारमे कुशल मा ।

*(437) कोमलाकारा - कोमल स्वरूप मा ।

*(438) कुरूकुल्ला - श्रीचक्रके बीचमें स्थित मा ।

*(439) कुलेश्वरी - ब्रह्मा, विष्णु और महेशके कुलकी मा ।

*(440) कुलकुण्डालया - मुलाधार चक्रके बीचमे स्थित मा ।

*(441) कौलमार्गत्तपरसेविता - कौलाचार मार्गियोंसे सेवित मा ।

*(442) कुमरगणनाथांबा - कार्तिकेय और गणपती जिनके पुत्र है वह पार्वती जिनका अंश है वह मा ।

*(443) तुष्टिः - भक्तके ह्रदयमे संतुष्टताके रूपमे रहनेवाली मा ।

*(444) पुष्टिः - भक्तका पोषण करनेवाली मा ।

*(445) मतिः -भक्तके कल्याणके लिये उसको सद् बुध्दी देनेवाली मा ।

*(446) धृतिः - दुःख्ख सहन करनेकी शक्ति देनदवाली मा ।

*(447) शान्तिः - शान्ति देनेवाली मा ।

*(448) स्वतिमतिः - मंगल स्वरुप, मंगल करनेवाली देनेवाली मा ।

*(449) कान्तिः - प्रकाश स्वरूप मा ।

*(450) नन्दिनी - नन्दके घर जन्मी हुई श्रीकृष्णकी बहनके रुपमे शक्तिस्वरूप मा ।

*(451) विघ्ननाशिनी - विघ्नोंका नाश करनेवाली मा ।

*(452) तेजोवती - तेजसे परिपूर्ण मा ।

*(453) त्रिनयना - सुर्य, चन्द्र और अग्नि रूप तीन नेत्रोंवाली मा ।

*(454) लोलाक्षीकामरुपिणी - तिरछी, खोजनेवाली और डोलती हुई आखोंवाली मा ।

*(455) मालिनी - असंख्य हारोंसे सुशोभित मा ।

*(456) हंसिनी - हंसिनी जैसे चालवाली मा ।

*(457) माता - सृष्टि माताके रुपमें मा ।

*(458) मलयाचलवासिनी - सुगन्धी मलयाचल पर्वतमे रहनेवाली मा ।

*(459) सुमुखी - संदर मुखवाली मा ।

*(460) नलिनी - कमल जैसी कोमल मा ।

*(461) सुभ्रुः - सुंदर भौंहोवाली मा ।

*(462) शोभना - शोभायमान मा। शोभना बढानेवाली मा ।

*(463) सुरनायका - देवताओंका कल्याण और दैत्योंसे बचनेका उपाय बतानेवाली मा ।

*(464) कालकण्ठी - जिनके कण्ठमे कालका निवास है वह मा ।

*(465) कान्तिमति - कान्तिकी तेजसे भरपुर मा ।

*(466) क्षोभिणी - मनमे क्षोभ या जोश उत्पन्न करनेवाली मा ।

*(467) सुक्ष्मरुपिणी - सुक्ष्म रुप वाली मा ।

*(468) वज्रेश्वरी - इन्द्रको वज्र अस्त्रका प्रदान करने वाली मा ।

*(469) वामदेवी - वाममार्गसे देवीकी उपासना करनेवाले वाम - मार्गियोंकी मा ।

*(470) वयोवस्थाविवर्जिता - सब अवस्थाओंसे मुक्त मा ।

*(471) सिध्देश्वरी - सिध्दोंकी इश्वरी और सब सिध्दीया देनेवाली मा ।

*(472) सिध्दविद्या - सिद्दी और सिद्दीकी विद्या रुप मा ।

*(473) सिध्दमाता -सिध्दोंकी माता मा ।

*(474) यशस्विनी - यश प्रदान करनेवाली मा ।

*(475) विशुध्दचक्रनिलया  - कण्ठमें स्थित विशुध्द चक्रमे स्थित मा ।

*(476) आरक्तवर्णा - गुलाबी रंगकी चेहरेवाली मा ।

*(477) त्रिलोचना  -  तीन आखोवाली मा ।

*(478) खट्वांगादिप्रहरणा -चारपाइके पांव जैसे मामुली अस्त्रोंसे भी दुष्मनोंको दुर भगानेवाली मा ।

*(479) वदनैकसमन्विता - एक वदनवाली मा ।

*(480) पायसान्नप्रिया - जिन्हे दूध और खीर जैसे अन्न प्रिय है वह मा ।

*(481) त्वकस्था - त्वचाकी अध्यक्षा मा ।

*(482) पशुलोकभयंकरी - पशुवृत्तियोंके लोगोंको भय दिखानेवाली मा ।

*(483) अमृतादिमहाशक्तिसंंवृता - अमृत आदि महाशक्तियोंसे घिरी हुई मा ।

*(484) डाकिनीश्वरी - डाकिनीश्वरीके रूपमे मा ।

*(485) अनाहताब्जनिलया - बारह दल कमल जो ह्रदयमे स्थित होता है उस अनाहत चक्रमे निवास करनेवाली *मा ।

*(486) श्यमाभा -श्याम रंगवाली मा ।

*(487) वदनद्वया - दो मुखवाली मा ।

*(488) दंष्ट्रोज्वला - उज्वल दातोवाली मा ।

*(489) अक्षमालादिधरा - अक्षमाला धारण की हुई मा ।

*(490) रूधिरसंस्थिता - रुधिरमें अध्यक्षरुप मा ।

*(491) कालरात्र्यादिशक्त्यौकवृत्ता - कालरात्री आदि शक्तियोंसे सेवित मा ।

*(492) स्निग्धौदनप्रिया - घीसे बनाये जानेवाले अन्न जिन्हे प्रिय है वह मा ।

*(493) महावीरेन्द्रवरदा - महावीरोंको वर प्रदान करनेवाली मा ।

*(494) राकिण्यम्बास्वरूपिणी - राकिणि अम्बाके स्वरुपमे  मा ।

*(495) मणिपूराब्जनिलया - नाभीमें स्थित मणिपूर चक्रमे स्थित मा ।

*(496) वदनत्रयसंयुता - तीन वदनवाली मा ।

*(497) वज्रादिकयुधोपेता - व्रज आदि आयुध जिन्हे धारण किये है वह मा ।

*(498) डामर्यादिभिरावृता - डामरी आदी शक्तियोंसे सेवित मा ।

*(499) रक्तवर्णा - लाल रंगवाली मा ।

*(500) मांसनिष्ठा - मांसकी अधिष्ठात्री स्वरूपमे मा ।

यह ललिता सहस्रनाम भाष्य संत श्री माईजी महाराजजीके लिखी हुई पुस्तकोंपर आधारित है । अधिक जानकारीके लिये कृपया निम्न लिखीत लिंक्स पर आवश्य भेंट दीजिये  -

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Tuesday 14 October 2014

Names 351 to 400


*(351) वामकेशी - सुन्दर केशोंवाली मा ।

*(352) वन्हिमण्डलवासिनी - अग्निमण्डलमें वा मूलाधार चक्रमें निवास करनेवाली मा ।

*(353) भक्तिमत्कल्पलतिका - भक्तोंके लिये कल्प वृक्षकी लताके स्वरूप मा ।

*(354) पशुपाशविमोचिनी -अज्ञानियोंको बंधनसे मुक्त करनेवाली मा ।

*(355) संहृताशेषपाखण्डा - पाखंडियोंका नाश करनेवाली मा ।

*(356) सदाचारप्रवर्तिका - सदाचारको प्रवृत्त करनेवाली मा ।

*(357) तापत्रयाग्निसंतप्तसमाल्हादानचन्द्रिका - तीन प्रकारके तापोंसे पीडित हुए अपने भक्तोंको शान्ती

प्रदान करनेवाली चन्द्रिकाके समान मा ।

*(358) तरूणी - जवानीसे भरपुर मा ।

*(359) तापसाराध्या - तपस्वियोंसे आराधित मा ।


*(360) तनुमध्या - पतली कमरवाली मा ।

*(361) तमोपहा - तमोगुणका अन्धकार दूर करनेवाली मा ।

*(362) चितिस् - बुध्दी, ज्ञान, विद्या और प्रज्ञा का स्वरूप मा ।

*(363) तत्पदलक्ष्यार्था - तत्वमसी नामक महावाक्यमे तत् शब्दसे लक्षीत हो जानेवाली मा ।

*(364) चिदेकरसरूपिणी - बुध्दीका एकरस रूप मा ।

*(365) स्वात्मानन्दलवीभूतब्रह्माद्यानन्दसंततिः - ब्रह्मादिका आनंद जिनके निजी आनंदका एक अंशमात्रही

है वह मा ।

*(366) परा - अप्रकट और कल्याण स्वरूप मा ।

*(367) प्रत्यकचितीरूपा - सबकी अन्तरात्मा रूप मा ।

*(368) पश्यन्ती - अर्थसूचक वाणी जो बाहर निकलनेसे पहले मस्तकमे घूमती है उस भाषाका या स्थितीका

स्वरूप मा ।

*(369) परदेवता - सब देवतोंसे परे ( उपर ) मा ।

*(370) मध्यमा - आरंभिक शब्द रूपी मा ।

*(371) वैखरीरूपा - अन्तके बोले हुए वाणी रूप श्बदोंकी भाषा रूपमे मा ।

*(372) भक्तमानसहंसिका - भक्तके मनमे विहार करनेवाली मानस सरोवरकी हंसिका स्वरूपमे मा ।

*(373) कामेश्वरप्राणनाडी - अपने भक्तके प्राणनाडीके स्वरूपमे मा ।

*(374) कृतज्ञा - भक्तके हरएक काम को देखनेवाली और फल देनेवाली मा ।

*(375) कामपूजिता - कामदेवसे पूजीत मा ।

*(376) श्रृंराररससंपुर्णा - श्रृंगाररस से परिपूर्ण मा ।

*(377) जया - भक्तकी जय करनेवाली मा ।

*(378) जालन्धरस्थिता - कण्ठमे स्थित मा ।

*(379) ओड्याणपीठनिलया - जो नाभी प्रदेशमे स्थित है वह मा ।

*(380) बिन्दुमण्डलवासिनी - श्रीचक्र श्रीयन्त्रके मध्यत्रिकोणमे स्थित रहनेवले बिन्दुके स्वरुपमा ।

*(381) रहोयागक्रमाराध्या - भक्त और कुण्डलिनी स्वरुप मा का जब सहसस्रार चक्रमे योग होता है तब

होनेवाले आनन्दके लिये पुजी जानेवाली मा ।

*(382) रहस्ततर्पणतर्पिता - मानसिक और गुप्तरितीसे तर्पणपर राजी होनेवाली मा ।

*(383) सद्यःप्रसादिनी - तत्काल प्रसन्न होनेवाली मा ।

*(384) विश्वसाक्षिणी - विश्वके सारे कामोंकी साक्षी स्वरूप मा ।

*(385) साक्षीवर्जिता - जो मा सबको देखती है लेकिन जिसको कोईभी नही देख सकता वह मा ।

*(386) षडंगदेवतायुक्ता - सर्वज्ञता, संतोष,स्वतन्त्रता,प्रज्ञा, अक्षरत्व और अनंतता इन छः शक्तियोंसे युक्त मा ।

*(387) षाडगुण्यपरिपूरिता - एैश्वर्य, धर्म, किर्ती, ज्ञान, श्री ओर वैराग्य से परिपूर्ण मा।

*(388) नित्यक्लीन्ना - सदा दयावान मा ।

*(389) निरूपमा - जिनकी किसीसे उपमा हो नही सकती वह मा ।


*(390) निर्वाणसुखदायिनी - मुक्तीका सुख प्रदान करनेवाली मा ।

*(391) नित्यषोडशिकारूपा - सोलह नित्यायें याने पूर्णिमा स्वरूप माईकी सोलह सहचरी रूप दासीयोंके

स्वरूपमे मा ।

*(392) श्रीकण्ठार्धशरिरीणी - श्री शिवजीके आधे शरीरमे रहनेवाली पार्वतीके स्वरूपमे मा ।

*(393) प्रभावती - तेजस्वी मा ।

*(394) प्रभारूपा - तेजकी तेजस्विताका स्वरूप मा ।

*(395) प्रसिध्दा - सब लोकोमे प्रसिद्द मा ।

*(396) परमेश्वरी - सबकी परम ईश्वरी मा ।

*(397) मूलप्रकृती - प्रकृतीका मुल कारण मा ।

*(398) अव्यक्ता - समझमे न आनेवाली तथा अत्यन्त गूढ रहकार कभी प्रकट न होनेवाली मा ।

*(399) व्यक्ताव्यक्तस्वरूपिणी -प्रकट और गुप्त स्वरूपमे रहनेवाली मा ।

*(400) व्यापिनी - सर्वव्यापक, विश्वव्यापक मा ।

संत श्री माई स्वरूप माई मार्कण्ड ( माईजी ) के पुस्तकोंपर आधारित यह यह सहस्रनाम भाष्य है । ईन

सहस्रनामोंकी अधिक विस्तृत जानकारीके लिए देखिए निम्न लींक्स -



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