Sunday 17 August 2014

Names 201 to 250

(201) सदगतिप्रदा - मृत्युके बाद सदगति देनेवाली मा । सत्यमार्गमे चलनेकी शक्ती और बुध्दी देनेवाली मा ।
(202) सर्वेश्वरी - सबके उपर ; सबकी ईश्वरी मा ।
(203) सर्वमयी - सबमे और सभी जगहपर व्याप्त मा ।
(204) सर्वमन्त्रस्वरूपिणी - सब मन्त्रोंके मुलस्वरूप मा ।
(205) सर्वयन्त्रात्मिका - सब यन्त्रोंकी आत्मा मा ।
(206) सर्वतन्त्ररूपा -  सब तन्त्रोंके प्राणरूप मा ।
(207) मनोन्मनी - अपने भक्तके मनको उन्मनी अवस्थामे ले जानेवाली मा ।
(208) माहेश्वरी - महान एैश्वर्यवाली मा ।
(209) महादेवी - महादेवी स्वरूप मा ।
(210) महालक्ष्मी - महालक्ष्मी स्वरूप मा ।
(211) मृडप्रिया - जिनको दुसरोंको सुख देनेका स्वभाव है, एैसे भक्त जिन्हे प्रीय है वह मा ।
(212) महारूपा - बहुत रूपोंवाली मा ।
(213) महापूज्या - पूजा करनेयोग्य एेसी आखरी तत्वस्वरूप मा ।
(214) महापातकनाशिनी - अपने भक्तोंके महान पातकोंका नाश करनेवाली मा । महान पातकोंका नाश करनेवाली मा ।
(215) महामाया - माया दुनियाको भुलावा देती है लेकिन उस मायाको भी भुलाकर रख दे एैसा चरित्र अपने भक्तोंको देनेवाली मा ।
(216) महासत्वा - अपने भक्तके सत्वकी परिक्षा कर उसमे उत्तीर्ण होनेकी शक्ति प्रदान करनेवाली मा ।
(217) महाशक्ती - महान शक्तीवाली मा ।
(218) महारतिः - भक्तोंको महाउपभोगका आनंद प्रदान करनेवाली मा ।
(219) महाभोगा - सबसे बडे भोगोंको भोगनेवाली और उनके भोगस्वरूप मा ।
(220) महैश्वर्या - बडेसे बडे राजोंसेभी महान मा ।
(221) महावीर्या - बडसे बडे बलशालीयोसे भी महान वीर्यवती मा ।
(222) महाबला - जिनका बल महान है, जिनके बलकी कोई उपमा या उन(मा)के बलका ज्ञान किसीसेभी हो ही नही सकता एैसी महान बलशाली मा ।
(223) महाबुध्दी - महान बुध्दीशालीयोंसे भी महान बुध्दी स्वरूपमे मा ।
(224) महासिध्दी -महान सिध्दोंसे भी महान सिध्दीयोंको देनेवाली मा ।
(225) महायोगेश्वरेश्वरी - महान योगेश्वरोंकी ईश्वरी मा ।
(226) महातन्त्रा - महान तन्त्र स्वरूप मा ।
(227) महामन्त्रा - महान मन्त्र स्वरूप मा ।
(228) महायन्त्रा - महान यन्त्र स्वरूप मा ।
(229) महासना - जिस आसनसे सबसे महान सिध्दी प्राप्त होती है उस अासनपर अपने भक्तको स्थिर करनेवाल्र मा ।
(230) महायागक्रमाराध्या - महान यज्ञसे आराधीत और पुजनीय मा ।
(231) महाभैरवपूजिता - पुरूषार्थके देवता महाभैरवसे पूजित मा ।
(232) महेश्वरमहाकल्पमहाताण्डवसाक्षिणी - महाकल्पमे महेश्वरका महाताण्डव देखनेवाली मा । जिनको महेश्वर अपने ताण्डव नृत्यसे प्रसन्न रखनेकी आशा रखते है वह मा ।
(233) महाकामेषमहिषी - जिसने कामको जित लिया है एैसे भक्तकी राजमाता महाराणीरूप मा ।
(234) महात्रिपुरसुंदरी - सृष्टीके पालन और संहारका आयोजन करनेवाली महात्रिपरसुंदरी मा ।
(235) चतुःषट्युपचाराढ्या - चौसष्ठ विधीयोंसे पूजी जानेवाली मा ।
(236) चतुःषष्टिकलामयी - चौसठ कलाओंकी ज्ञाता और ज्ञान देनेवाली मा ।
(237) महाचचतुःषष्टिकोटियोगिनीगणसेविता - चौसष्ठ करोड महान योगिनीयोंसे सेवित मा ।
(238) मनुविद्या - मानसिक क्रियाकी विद्या, मानस कृपाके द्वारा मिलनेवाली मा ।
(239) चन्द्रविद्या - ह्रदयके वृत्तियोंकी क्रिया और माईकी हार्दिक कृपासे मिलनेवाली मा ।
(240) चन्द्रमण्डलमध्यगा - पूर्णिमाकी रात्रीके चन्द्रमाके बीचमे स्थित समझकर जो ध्यायी और पूजी जाती है वह मा ।
(241) चारूरूपा - सौन्दर्यशाली मा ।
(242) चारूहासा - चंद्रमाके समान अत्यन्त मोहक आल्हाददायक स्मित हास्य करनेवाली मा ।
(243) चारूचंद्रकलाधरा - चंद्रमाके समान आनंद उत्पन्न करनेवाले आनंद फैलानेकी सभी कलाओंको धारण करनेवाली मा ।
(244) चराचरजगन्नाथा - चर और अचर, जड और चेतन जगतकी मा ।
(245) चक्रराजनिकेतना - श्रीचक्र श्रीयन्त्रमे निवास करनेवाली मा ।
(246) पार्वती - पतिव्रता स्त्रीयोंके पातिव्रत्यकी रक्षा करनेवाली और नीतिपतनकी आपत्तीके समय उसके परिणाममे दुःख होनेवाले भोगोंके असलीयतका ज्ञान कराके भक्तकीकी आखे खोलकर उसको सत्यकी राहपर चलानेवाली मा ।
(247) पद्मनयना - कमल जैसे आखोंवाली मा ।
(248) पद्मरागसमप्रभा - पद्मराग मणी जैसी तेजस्वीनी मा ।
(249) पंचप्रेतासनासीना - जीव, प्रकृती, बुध्दी, अहंकार और मन इन पंचप्रेतरूपी मंच याने खाट पर विराजित मा ।
(250) पंचब्रह्मस्वरूपिणी - ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इश्वर और सदाशिव इन पाच ब्रह्मोंका स्वरूप मा ।

ॐ संतश्रेष्ठ श्रीमाईजी महाराज जी के लिखेहुए पुस्तकोंपर आधारित  यह भाष्यार्थ है । उनके विषयपर अधिक जानकारीके लिए कृपया संपर्क करे  - माई निवास, सरस्वती रस्तेके अंतीमभाग पर स्थीत, सांताक्रझ (पश्चिम), मुम्बई - 400054.

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Friday 1 August 2014

Names 151 to 200

जय माई जय मार्कण्ड माई
श्रीललिता सहस्रनाम : -
(151) निरन्तरा - उंच और नीच, पाप और पुण्यवानमें जो अंतर नही रखती वह मा ।
(152) निष्कारणा - कार्यकारणके नियमसे परे मा ।
(153) निष्कलंका - कलंकरहित मा । भक्तको कलंकसे बचानेवाली मा ।
(154) निरूपाधिः - उपाधिरहित मा । भक्तकी सब उपाधी हर लेनेवाली मा ।
(155) निरीश्वरा - जिनके परे कोई ईश्वर नही है एैसी मा ।
(156) नीरागा - राग रहित मा । भक्तोंको रागरहित करनेवाली मा ।
(157) रागमथनी - भक्तके राग, द्वेष नाश करनेवाली मा ।
(158) निर्मदा - मदरहित मा । भक्तोंको मदरहित बननेवाली मा ।
(159) मदनाशिनी - भक्तोंके मदका नाश करनेवाली मा ।
(160) निश्चिन्ता - चिन्तारहित मा । भक्तोंकी सब चिन्ताए हर लेनेवाली मा ।
(161) निरहंकारा - अहंकार रहित मा । भक्तोंको अहंकारसे रहित बनानेवाली मा ।
(162) निर्मोहा - मोहसे परे मा । भक्तका मोह दूर करनेवाली मा ।
(163) मोहनाशिनी - अपने भक्तके सांसारिक मोहका नाश करनेवाली मा ।
(164) निर्ममा - ममता रहित मा । जो कुछ मेरा है वह मेरा नही बल्कि मेरे भक्तका है एैसे ' मेरा नही सब कुछ तेरा है ' की मान्यतासे भक्तके साथ बर्ताव करनेवाली मा । अपने भक्तको ' मा के सिवा  और सब सांसारिक संपत्ती मेरी नही बल्कि मेरी माकी है ' इस समझसे माकी शरण जानेकी बुध्दी देनेवाली मा । अपने भक्तको ममतारहित करनेवाली मा ।
(165) ममताहन्त्री - भक्तकी सांसारिक ममताका नाश करनेवाली मा ।
(166) निष्पापा - पापरहित मा । भक्तको पापमुक्त करानेवाली मा ।
(167) पापनाशिनी - भक्तके पापोंका नाश करनेवाली मा ।
(168) निष्क्रोधा - क्रोधरहित मा । भक्तको क्रोधरहित बनानेवाली मा ।
(169) क्रोधशमनी -भक्तके क्रोधको शांत करनेवाली मा । जिस तरह श्रीशिवजीके प्रणाम करनेसे काली माता क्रोधरहित हो गयी थी उसतरह भक्तके प्रेमसे अपना क्रोध भूल जानेवाली मा ।
(170) निर्लोभा - लोभरहित मा । भक्तको लोभरहित बना देनेवाली मा ।
(171) लोभनाशिनी - भक्तके लोभका नाश करनेवाली मा ।
(172) निःसंशया - संशयसे परे मा । भक्तको एक बार अपनी शरणमे स्वीकार कर लेनेपर उसको संशयरहीत ( निसंशय ) कर देनेवाली मा ।
(173) संशयघ्नी - भक्तके संशयका नाश कर देनेवाली मा ।
(174) निर्भवा - मूलरहित मा । जन्मरहित मा ।
(175) भवनाशिनी - भक्तका सांसारिक बन्धनका नाश करनेवाली मा ।
(176) निर्विकल्पा - संकल्प विकल्पसे परे मा । भक्तका संकल्प विकल्प मिटानेवाली मा ।
(177) निराबाधा - बाधारहित मा । भक्तकी बाधाए दुर करनेवाली मा ।
(178) निर्भेदा - भेदरहित मा ।
(179) भेदनाशिनी - भक्तके छोटे बडे, उच्च नीच, इत्यादी अनेक प्रकारके भेदभावका नाश करनेवाली मा ।
(180) निर्नाशा - नाशरहित मा ।
(181) मृत्युमथनी - मृत्युका भी नाश करनेवाली मा ।
(182) निष्क्रिया - क्रियासे भी परे मा । क्रिया बिगर अपने संकल्प मात्रसेही जगतको बनानेवाल्री और इच्छनुसार  बर्ताव करनेवाली मा ।
(183) निष्परिग्रहा - किसी सेवाका अनंत फल दिए बिगर न रहनेवाली मा ।
(184) निस्तुला - अपने भक्तके दोष न तोलनेवाली मा । मुकाबलेसे परे मा ।
(185) नीलचिकुरा - नीले केशोंवाली मा ।
(186) निरपाया - सबको अनुकुलता देनेवाली मा । सबसे अनुकुल रहनेवाली मा ।
(187) निरत्यया - सबसे हुक्म मनवानेवाली मा । जिनकी आज्ञा और संकल्प कोई नही तोड सकता या टाल सकता वह मा ।
(188) दुर्लभा - कृपाके सिवा दुर्लभ मा । 
(189) दुर्गमा - माकी कृपाके सिवा उनके चरणोंतक पहुंचना कठीन है वह मा । 
(190) दुर्गा - अपने भक्तके उपर आयी हुई किसीभी आपत्तिको निवारण कर देनेवाली मा । जो अपूर्णताको पूर्ण कर देती है वह मा । जो भिन्न भिन्न शक्तीयोंके कार्योंका अवलोकन करती है और उनको अपने ध्येय और सिध्दिकी ओर बढाती है वह मा । भक्तके आदिसे अंत तक उनकी उन्नतीके मार्गकी हर एक स्थितीमें जिम्मेदारी लेनेवाली मा ।
(191) दुःखहन्त्री - सांसारिकता और जन्म मरणसे होनेवाले दुःखका नाश करनेवाली मा ।
(192) सुखप्रदा - इस लोक और परलोकमे सुख और आनंद देनेवाली मा ।
(193) दुष्टदूरा - दुष्ट ओर पापीयोंसे अपने भक्तोंको दूर रखनेवाली मा ।
(194) दुराचारशमनी - धर्मके नामपर दुराचार और कुरितीयोंका नाश करनेवाली मा । दुराचारसे पैदा होनेवाले दुःखोंको सहन करनेकी शक्ती अपने भक्तोंको देकर उसे शांत रखनेवाली मा ।
(195) दोषवर्जिता - सभि दोषोंसे रहित मा ।
(196) सर्वज्ञा - हरेक प्रकारके ज्ञान देनेवाली या सब कुछ जाननेवाली मा ।
(197) सान्द्रकरूणा - अतिषय करूणाकी वृष्टी करनेवाली मा ।
(198) समानाधिकवर्जिता - छोटे बडेका भेद भुलानेवाली मा ।
(199) सर्वशक्तिमयी - सर्व शक्तियोंसे युक्त और शक्ति देनेवाली मा ।
(200) सर्वमंगला - सबका और सब प्रकारका मंगल करनेवाली मा ।

संतश्रेष्ठ श्रीमाईजी ( श्री माईस्वरूप माई मार्कण्ड जी ) के पुस्तकोंपर आधारित यह ललिता सहस्रनामोंका विवरण है । अधिक जानकारीके लिए कृपया संपर्क करे - माई निवास, सरस्वती मार्गके अंतिम भागपर स्थित, सांता क्रुझ (पश्चिम), मुंबई 400054 ।

 श्रीललिता सहस्रनामोंकी अधिक और विस्तृत जानकारीके लिये कृपया निम्न लिखीत लिंकपर क्लीक कीजिए : -

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