Saturday 27 December 2014

Names 901 to 1000

Jay Mai Jay Markand Mai


(901) नादरूपिणी - मा शब्दके उच्चारणसे भक्तको अपनेमे मिला देनेवाली मा ।
(902) विज्ञानकलना - विज्ञानका (बोधका) कारणरूप मा ।
(903) कल्या - भक्तोंके साथ खेलनेमें मस्त मा ।
(904) विदग्धा -भक्तोंको सूधरनेमे होशियार मा ।
(905) वैन्दवासना - भक्तोंके ह्रदयमेचांदनी जैसी बसनेवाली मा ।
(906) तत्वाधिका सब त्तवोंसे पे मा ।
(907) तत्वमयी - सब तत्वोंका रूप मा ।
(908) तत्वमर्थस्वरूपिणी - सब धर्मोंके तत्व स्वरूप मा । तत्वथर्मरूपी मा ।
(909) सामगानप्रिया - शान्त करनेवाले गानोंकी प्रिय मा ।
(910) सौम्या - शौम्य स्वभाववाली मा ।
(911) सदाशिवकुटुम्बिनी - भक्तोंके कुटुम्बको संभालनेवाली मा ।
(912) सव्यापसव्यमार्गस्था - वाम और दक्षिण इन दोनो मार्गोमें स्थित मा ।
(913) सर्वापद्विनिवारिणी - सब प्रकारके आपत्तीयोंका निवारण करनेवाली मा ।
(914) स्वस्था- अपने प्रतापमे आप स्थित मा ।
(915) स्वभावमधुरा - मधुर स्वभाववाली मा ।
(916) धीरा - सहन शक्ति प्रदान करनेवाली मा ।
(917) धीरसमर्चिता - धैर्यवानोंसे आराधित मा ।
(918) चैतन्यअर्ध्यसमाराध्या - चैतन्य  (अपने प्राण)के अर्ध्यसे आराधित मा ।
(919) चैतन्यकुसुमप्रिया -चैतन्य पुष्प जिन्हे प्रिय है वह मा ।
(920)  सदोदिता - भक्तोंकी खबर लेकर उनका कल्याण करनेके लिये सदा तैयार मा ।
(921) सदातुष्टा - सर्वदा संतुष्ट मा ।
(922) तरूणादित्यपाटला - सवेरेके तरूण सूर्य जैसी मा ।
(923) दक्षिणादक्षिणाराध्या - दक्षिण और वाम मार्गीयोंसे आराधित मा ।
(924) दरस्मेरमुखांबुजा - जिनके शंख जैसे आकारवाले कंठसे हास्य निकलकर मुखको प्रकाशित करता है वह मा ।
(925) कौलिनीकेवला - कौलमार्गियोंकी केवल मा ।
(926) अनर्घ्यकैवल्यफलदायिनी - अमूल्य मुक्तिका पद देनेवाली मा ।
(927) स्तोत्रप्रिया - स्तोत्र करनेसे प्रसन्न होनेवाली मा । जिन्हे स्तोत्र प्रिय है वह मा ।
(928) स्तुतिमती - जिन्हे स्तुती प्रिय है वह मा । स्तुती सुनकर प्रसन्न होनेवाली मा ।
(929) श्रुतिसंस्तुतवैभवा - जिनके वैभवका श्रुतीयोने वर्णन किया है वह मा ।
(930) मनस्विनी - कल्पनासे भरपूर मा ।
(931) मानवती - बडे मानवाली मा ।
(932) महेशी - सृष्टीका अन्तिम विनाश करनेवाली मा ।
(933) मंगलाकृतिः - मंगल आकृतीवाली मा ।
(934) विश्वमाता - विश्वकी मा ।
(935) जगध्दात्री - सारे जगको धारण करनेवाली मा ।
(936) विशालाक्षी - जिनकी आखे बडी याने दीर्घ है वह मा ।
(937) विरागिणी - वैराग्य रूप मा ।
(938) प्रगल्भा - सब कामोंमे मजबूत मा ।
(939) परमोदरा - परम उदार मा ।
(940) परमोदा - सबको प्रसन्न करनेवाली मा ।
(941) मनोमयी - भक्तोंके मनको ठीक करनेवाली मा ।
(942) व्योमकेशी - बादलो जैसे काले केशोंवाली मा ।
(943) विमानस्था - विमानपर विराजित मा । भक्तोंके हितके लिये सदा तत्पर मा ।
(944) वज्रिणी - अपने भक्तका तुरन्त उध्दार करनेके लिये उसके प्रती वज्र जैसा कठिन ह्रदय करनेवाली मा ।
(945) वामकेश्वरी - वामकोंकी ईश्वरी मा ।
(946) पंचयज्ञप्रिया - देवयज्ञ, पितृयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ, भुतयज्ञ और मनुष्य यज्ञ इन पांच प्रकारके यज्ञ जिन्हे प्रिय है वह मा ।
(947) पंचप्रेतमंचाधिशायिनी - पंचमहाभुत (पृथ्वी,जल, वायु, तेज और आकाश) के बने हुए विश्वरुपी पलंगपर सोनेवाली ईश्वरी मा ।
(948) पंचमी - पंच देवता ब्रह्मा, विष्णु, महेश, ईश्वर और सदाशिवसे आराधित मा ।
(949) पंचभूतेषी - पांच तत्वोंपर राज्य करनेवाली , पंच महाभुतोंकी ईश्वरी मा ।

(950) पंचसंख्योपचारिणी - धूप, दीप, पुष्प, गन्ध और नेवैद्य - इन पाच उपचारोंसे पूजीत होनेवाली मा ।

(951) शाश्वती - शाश्वत (चिरकाल) है ईश्वरी वह मा ।
(952) शाश्वतएैश्वर्या - कायम रहनेवाला साम्राज्य देनेवाली मा ।
(953) शर्मदा - भक्तोंको सुख देनेवाली मा ।
(954) शंभुमोहिनी -  भगवान श्री शंभुको मोहित करनेवाली पार्वती स्वरूप मा ।
(955) धरा - धरतीरूप मा ।
(956) धरसुता - हिमालयकी कन्या पार्वती जिनका अंश है वह मा ।
(957) धन्या - भक्तोंको धन्य करनेवाली मा ।
(958) धर्मिणी - धर्मका स्वरूप मा । धार्मिक विचारोंको पुष्ट करनेवाली मा ।
(959) धर्मवर्धिनी - भक्तको धार्मिक कामोमें आगे बढानेवाली मा ।
(960) लोकातीता - सप्त लोकोंसे परे मा । (भुलोक, भुर्व लोक, स्वःर्गलोक, जनलोक, तपोलोक इत्यदी लोक)
(961) गुणातीता - सत्व, रज, तम गुणोंसे परे मा ।
(962) सर्वातीता - सबसे परे (महान) मा ।
(963) शमात्मिका - भक्तकी आत्माको शान्त करनेवाली मा ।
(964) बन्धुककुसुमप्रिया - बन्धक फुल जिन्हे प्रिय है वह मा ।
(965) बाला - कन्यारूप बाला त्रिपुरसुंदरी मा ।
(966) लीलाविनोदिनी - लिलामात्रसे अपना तथा अपने भक्तका विनोद करनेवाली मा ।
(967) सुमंगली - मंगल ही मंगल करनेवाली मा ।
(968) सुखकरी - सुख पैदा करनेवाली मा ।
(969) सुवेशाढ्या - बहुत सुन्दर आभूषण और वस्त्रोंसे सुशेभित मा ।
(970) सुवासिनी - विवाहित स्त्रीयोंसे कौटुंबिक कार्यरुप सेवासे प्रसन्न होनेवाली मा ।
(971) सुवासिन्यर्चनप्रीता - विवाहीत स्त्रीकी अपनी पतिके साथ की जानेवाली आराधनासे प्रसन्न होनेवाली मा ।
(972) आशोभना - सर्वत्र औरसदैव शोभायमान मा ।
(973) शुध्दमानसा - भक्तके मनको शुध्द करनेवाली मा ।
(974) बिन्दुतर्पणसंतुष्टा - प्रेमसे बिन्दुमात्र तर्पणसेभी सन्तुष्ट होनेवाली मा ।
(975) पूर्वजा - सबकी पूर्वज - सबसे पहली मा ।
(976) त्रिपुराम्बिका - श्रीचक्रकी आठवी आकृतीमेंस्थित मा ।
(977) दशमुद्रासमाराध्या - दस मुद्राओंसे आराधित मा ।
(978) त्रिपुराश्रीवशंकरी -श्रीचक्रकी पाचवी आकृतीमे स्थित मा ।

(979) ज्ञानमुद्रा - ज्ञानकी मुद्रा रूपिणी मा ।

(980) ज्ञानगम्या - ज्ञानसे परे होनेपरभी ज्ञानसे प्रसन्न होनेवाली मा ।
(981) ज्ञानज्ञेयस्वरूपिणी - ज्ञान और जानने योग्य वस्तुका स्वरूप मा ।
(982) योनिमुद्रा - नवमी मुद्रा (योनिमद्रामे) स्थित मा ।
(983) त्रिखण्डेशी - त्रिखण्डकी ईश्वरी मा ।
(984) त्रिगुणा - सत्व,रज और तम इन तीन गुणोंका स्वरूप मा ।
(985) अम्बा - जगतकी जननी अम्बा मा ।
(986) त्रिकोणगा - श्रीचक्रमें त्रिकोणमें स्थीत मा ।
(987) अनघा - अपने भक्तोंको पापरहित बनानेवाली मा ।
(988) अदभुतचरित्रा -अदभुत वरित्रवाली मा । 

(989) वांछितार्थप्रदायिनी - मनवांछीत पदार्थ देनेवाली मा ।
(990) अभ्यासातिशयज्ञाता - अतिशय अभ्यास करनेसे जाननमे आनेवाली मा ।
(991) षडध्वान्तीतरूपिणी - श्रीगणेश, देवी, शिव, विष्णु, सूर्य और इन्द्रसे परे मा ।
(992) अव्याजकरूणामूर्तिः - असीम करूणाकी मूर्ति मा ।
(993) अज्ञानध्वान्तदीपिका - अज्ञानरूपी अंधकारको भगानेके लिये दीपक स्वरूप मा ।
(994) आबालगोपविदिता - बालक और गोपोंको भी ज्ञात होनेवाली मा ।
(995) सर्वानुलंघ्यशासना - जिनकी आज्ञाका उल्लंघन कोईभी नही कर सकता वह मा ।
(996) श्रीचक्रराजनिलया - श्रीचक्रमें निवास करनेवाली मा ।
(997) श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी - श्रीत्रिपुरसुन्दरी रूप मा ।
(998) श्रीशिवा - सदा दयालु, कल्याणकारक मा ।
(999) शिवशक्त्यैक्यरूपिणी - श्रीशिव और शक्तीकी एेक्यता करानेवाली मा ।
(1000) ललिताम्बिका - भक्तोंसे खेल करनेवाली मा ।


https://mohankharkar.com/2015/09/01/god-as-mother-names-1-to-10/


यह ललिता सहस्रनाम भाष्य संतश्रेष्ठ श्री माईजी महाराजजीके लिखी हुई पुस्तकोंपरसे आधारित है और यह मेरी कैलासवासी माता श्रीसुशीलाको अर्पण है।


श्रीमाई मन्दीरका पता - माई निवास, सरस्वती रास्तेके अंतीम भागपर स्थीत, सांता क्रुझ (पश्चिम), मुम्बई 400054



सबका  कल्याण हो ।














Tuesday 2 December 2014

Names 801 to 900




(801) पुष्टा -भक्तोंके प्रेमके आनंदसे पुष्ट होनेवाली मा ।
(802) पुरातना - बहुत प्राचीन मा ।
(803) पूज्या - सबसे पूजिता मा ।
(804) पुष्करा - कमल जैसे कोमल मा ।
(805) पुष्करेक्षणा -महासागरमें पत्तेपर सोये हुएविष्णुकी रक्षा करनेवाली मा ।
(806) परंज्यतिः - महान ज्योति स्वरुप मा ।
(807) परंधाम - जो एक स्वयं महान धाम है वह मा ।
(808) परमाणुः - परमाणुका स्वरूप और परमाणुकाही साक्षी मा ।
(809) परात्परा - महानसेभी महान मा । पर, अपर और परात्परके स्वरूपमे मा ।
(810) पाशहस्ता - जनके हाथमे पाश है वह मा ।
(811) पाशहन्त्री - भक्तके संसारबंधनरुपी पाशका हनन करनेवाली मा ।
(812) परमन्त्रविभेदिनी - परमंत्रका ( जो भक्तोंके लिये दुख्खः दायक है) नाश करनेवाली मा ।
(813) मूर्ता - मूर्तिमंत मा ।
(814) अमूर्ता - आकार रहित मा ।
(815) अनित्यतृप्ता - बहुत थोडेसे प्रसन्न हो जानेवाली मा ।
(816) मुनिमानसहंसिका - मुनिकोंके मनरूपी मानस सरोवरमें हंसिका मा।
(817) सत्यव्रता - भक्तको सच्चे व्रतकी प्रेरणा करनेवाली मा ।
(818) सत्यरूपा - सत्यका स्वरूप मा ।
(819) सर्वान्तयामिणी - सबके अन्दरकी बात जाननेवाली मा ।
(820) सती - सती, भववान श्री शंकरकी पार्वती जिनका अंश है वह मा ।
(821) ब्रह्माणी- ब्रहमको पैदा करनेवाली मा ।
(822) ब्रह्म - ब्रह्म स्वरूप मा ।
(823) जननी - जन्म दनेवाली मा ।
(824) बहुरूपा - विविध रूपोमें मा ।
(825) बुधार्चिता - बुध्दीमान लोग जिनकी अर्चना करते है वह मा ।
(826) प्रसवित्री -प्रसव ( सृष्टी ) करनेवाली मा ।
(828) प्रचण्डा - दुष्टोंपर कोप करनेवाली मा ।
(829) आज्ञा - सबको आज्ञा सुनानेवाली मा ।
(830) प्रकटाकृतिः - सबके अनुभवमें आनेवाली आकृति वाली मा ।
(831) प्राणेश्वरी - प्राणकी ईश्वरी मा ।
(832) प्राणदात्री - ज्ञ्राण प्रदान करनेवाली मा ।
(833) पंचाशतपीठरूपिणी - श्रीचक्रमे पचास (50) अक्षरोमें हर एक अक्षरके लिये स्थान नियत किया हुआ है जहा एक एक अक्षररूपी शक्ति का निवास है ।एैसे पचास अक्षरोंके समुह श्रीचक्र श्रीयन्त्ररुपी मा । 
(834) विशृंखला - बन्धनरूपी जंजीरको तोडनेवाली मा ।
(835) विविक्तस्था - एकान्तमें रहनेवाली मा ।
(836) वीरमाता - वीरोंकी माता मा ।
(837) वियत्प्रसूः - आकाशको उत्पन्न करनेवाली मा ।
(838) मुकुन्दा - सब दुख्खोंसे छुडानेवाली मा ।
(839) मुक्तिनिलया - मुक्तिकी धाम मा ।
(840) मूलविग्रहरूपिणी - सब विग्रहोंका मूल मा ।
(841) भावज्ञा - भक्तोंके सब भावोंको जाननेवाली मा ।
(842) भवरोगघ्नी - भव संसार रूपी रोगका नाश करनेवाली मा ।
(843) भवचक्रप्रवर्तिनी - जन्म मरण आदि संसारका चक्र चलानेवाली मा 
(844) छन्दसारा - गायत्री मन्त्रका सार मा ।
(845) शास्त्रसारा - सब शास्त्रोंका सार मा ।
(846) मन्त्रसारा - सब मन्त्रोंका सार  मा ।
(847) तलोदरी - पतली कमरवाली मा ।
(848) उदारकीर्तिः - महान कीर्ति देनेवाली मा ।
(849) उदामवैभवा - विचारमें न आनेवाले वैभववाली मा ।
(850) वर्णरूपिणी - वर्ण (अक्षर) का स्वरूप मा ।
(851) जन्ममृत्युजरातप्तजनविश्रांतिदायिनी - जन्म मृत्यु और वृध्दावस्थाके दुख्ख इनसे विश्रांती देनेवाली मा ।
(852) सर्वोपनिषदुद् धुष्टा- सब उपनिषदोंसे घोषित मा ।
(853) शान्त्यतीताकलात्मिका - शांती पानकी कला देनेवाली मा ।
(854) गंभीरा - सागर जैसी गंभीर मा ।
(855) गगनान्तस्था - आकाशसे परे मा ।
(856) गर्विता - स्वाभिमानी मा ।
(857) गानलोलुपा - गायनकी प्रेमी मा ।
(858) कल्पनारहिता - कल्पनासे बाहर मा ।
(859) काष्ठा - स आत्माओंका केन्द्र और ध्येय मा ।
(860) अकान्ता - जिनका कोई कंत या पति नही वह मा ।
(861) कान्तार्धविग्रहा -भगवान श्री शिवजीकी अर्धांगी पार्वती जिनका अंश है वह मा ।
(862) कार्यकारणनिर्मुक्ता - कार्यकारण के सम्बन्धसे परे मा ।
(863) कामकेललितरंगिता - भक्तोंसे खेलनेके लिये तीव्र कामनावाली मा 
(864) कनत्कनकताटंका - कानोमें चमकते हुए कुण्डलों वाली मा ।
(865) लीलाविग्रहधारिणी - लीला करनेके लिये अने प्रकारके शरीर धारण करनेवाली मा ।
(866) अजा - जन्म रहित मा । 
(867) क्षयविनिर्मुक्ता - क्षय न होनेवाली या क्षयसे मुक्त  मा ।
(868) मुग्धा - मुग्ध करनेवाली मा ।

(869) क्षिप्रप्रसादिनी - थोडे प्रसादसे ही जल्दी प्रसन्न होनेवाली मा ।
(870) अर्न्तमुखसमाराध्या - सब वृत्तिया अन्तर्मख करके आराधित होनेवाली मा ।
(871) बर्हिमुखसुदुर्लभा - जिसकी वृत्तिया बाहरकी ओर भटकती रहती है उनके लिये दुर्लभ मा ।
(872) त्रयी - तीन प्रकारसे तीन अवस्थाओंमे प्रगट मा ।
(873) त्रिर्गनिलया - त्रिवर्ग देवताओंका घर मा ।
(874) त्रिस्था - त्रिमुर्ति (महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती) में स्थीत मा ।
(875) त्रिपुरमालिनी - श्रीचक्र श्रीयन्त्रमें छोटीचौडीसी आकृतीकी अधिष्ठात्री मा ।
(876) निरामया - रोगसे रहित मा ।
(877) निरालम्बा - अवलम्बन रहित, भक्तोंका आश्रय मा ।
(878) स्वात्मारामा - अपनेही मग्न आत्मा, आनंदित मा ।
(879) सुधासृतिः - अमृतका स्तौत या धारा रूप मा ।
(880) संसारपंकनिर्मग्नसमुध्दरणपण्डिता - संसारके कीचडमें फसे हुए जीवोंका उध्दार करनेमे कुशल मा ।
(881) यज्ञप्रिया - जिन्हे यज्ञ प्रिय है वह मा ।
(882) यज्ञकर्त्री - यज्ञ करने और करानेवाली मा ।
(883) यजमानस्वरूपिणी - यज्ञ करनेवाले यजमानका स्वरूप मा ।
(884) धर्माधारा - धर्मका आधार मा ।
(885) धनाध्यक्षा - धनकी अधिपती मा ।
(886) धनधान्यविवर्धिनी - धन और धान्य का विवर्धन करनाली मा ।
(887) विप्रप्रिया - विद्वान ब्राह्मणोंकी प्रिय है ।
(888) विप्ररुपा - विप्रोंका स्वरूप मा ।
(889) विश्वभ्रमणकारिणी - अभक्त, अज्ञानी और पशुवृत्तीके लोगोंको अनेक भ्रमोंके चक्करमे डालनेवाली मा ।
(890) विश्वग्रासा - विश्वको एकही ग्रासमे समाप्त करनेवाली मा ।
(891) विद्रुमाभा - कल्पवृक्ष स्वरूप मा ।
(892) वैष्णवी - विष्णुकी माता या वैष्णवी देवीके रुपमे मा ।
(893) विष्णुरूपिणी - विष्णुका स्वरूप मा ।
(894) अयोनिः - जिसने किसी योनीसे जन्म नही पाया वह मा ।
(895) योनिनिलया - सब योनियोंका जन्म स्थल मा ।
(896) कूटस्था - पहाडोंके झुण्डोंके बीचमै रहनेवाली मा ।
(897) कुलरूपिणी - कुलका आधार रूप मा ।
(898) वीरगोष्ठीप्रिया- वीरोंका पराक्रम भरी बातोंकी प्रिय मा ।
(899) वीरा - दिलेर, बहाद्दुर मा ।
(900) नैष्कर्म्या - भक्तोंको कर्मबन्धनसे मुक्ती देनेवाली मा ।

यह ललिता सहस्रनाम भाष्य संतश्रेष्ठ श्री माईजी महाराज जीके लिखी हुई पुस्तकोंके आधारपर किया है । श्री माई मन्दिरका पता - माई निवास, सरस्वती रस्तेके अंतीम भागपर स्थीत, सांताक्रुझ (पश्चिम), मुम्बई 400054
ललिता सहस्रनामके बारेमे अधिक जानकारीके लिये देखिये निम्न लिखीत लिंक्स -
https://mohankharkar.com/2015/09/01/god-as-mother-names-1-to-10/










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