Tuesday 25 November 2014

Names 701 to 800





(701) देशकालपरिच्छिन्ना - देश और कालसे परे मा ।
(702) सर्वगा - सब जगह मौजूद मा ।
(703) सर्वमोहिनी - सबको मोहित करनेवाली मा ।
(704) सरस्वती - सरस्वती जिनका अंश है वह मा ।
(705) शास्त्रमयी - सब शास्त्रोंका स्वरूप मा ।
(706) गुहाम्बा - कार्तिक स्वमीकी जननी पार्वतीके रूपमे मा । 
(707) गुह्यरूपिणी - गुप्त विद्या रूपिणी मा ।
(708) सर्वोपाधिविनिर्मुक्ता - सब प्रकारकी उपाधियोंसे मुक्त करानेवाली मा ।
(709) सदाशिवपतिव्रता - सदाशिवकी पतिव्रता पार्वती जिनका अंश है वह मा ।
(710) सम्प्रदायेश्वरी - संप्रदायको कायम करनेवाली और पालनेवाली मा ।
(711) साधु - साधुके रुपमें मा ।
(712) ई -  प्रिय मा । ईं बीजरूपी मा ।
(713) गुरूमण्डलरूपिणी - गुरू मंडल स्वरूप मा ।
(714) कुलोत्तिर्णा - भक्तको सब इन्द्रियोंसे परे ले जानेवाली मा ।
(715) भगाराध्या - सूर्यद्वारा पूजी जानेवाली मा ।
(716) माया - माया रूपी मा ।
(717) मधुमती - शहद जैसी मीठी जिनकी मती है एैसे भक्तके रूपमे मा ।
(718) मही - पृथ्वी माताके रूपमे मा ।
(719) गणाम्बा - श्रीगणेशकी माता पार्वती जिनका अंश है वह मा । 
(720) गुह्यकाराध्या - गुप्त रीतिसे आराधित होनेवाली मा ।
(721) कोमलांगी - कोमल अंगोवाली मा ।
(722) गुरूप्रिया - गुरूओंकी प्रिय मा ।
(723) स्वतंत्रा - स्वतंत्रताका स्वरूप मा ।
(724) सर्वतंत्रेशी - सर्व तन्त्रोकी ईश्वरी मा ।
(725) दक्षिणामूर्तिरूपिणी - दक्षिणामुर्ती शिवका स्वरूप मा ।
(726) सनकादिसमाराध्या - सनक, सनंदन ऋषीयोने जिनकी आराधना की है वह मा ।
(727) शिवज्ञानप्रदायिनी - जीवको शिव होनेका ज्ञान प्रदान करनेवाली मा ।
(728) चित्कला - सब आत्माओें स्थित चैतन्य कला ।
(729) आनन्दकलिका - आनन्दकी कली मा ।
(730) प्रेमरूपा - प्रेम का रूप मा ।
(731) प्रियंकरी - प्रेम पैदा करनेवाली मा ।
(732) नामपरायणप्रिता - भगवानके  नामोंका जप परायण करनेवाले भक्तोंसे प्रसन्न रहनेवाली मा । जिन्हे नामजपका पारायण प्रिय है वह मा ।
(733) नन्दिविद्या - सेवा मार्गकी विद्या स्वरूप मा ।
(734) नटेश्वरी - जगतको नचानेवाली और चलानेवाली मा ।
(735) मिथ्याजगदधिष्ठाना - मिथ्या  जगतको अपनी मायासे सत्य मनानेवाली मा ।
(736) मुक्तिदा - मुक्ति देनेवाली मा ।
(737) मुक्तिरुपिणी - मुक्तिका स्वरूप मा ।
(738) लास्यप्रिया - नाच जिन्हे प्रिय है वह मा ।
(739) लयकरी - सृष्टीका लय करनेवाली मा ।
(740) लज्जा - लज्जाका स्वरूप मा ।
(741) रंभादिवंदिता - रंभा आदी अप्सराओंने जिनका वंदन कीया है वह मा ।
(742) भवदावसुधावृष्टिः - संसारके दुःख्खरूपी अग्निको बुझानेके लिये अमृतकी वर्षा करनेवाली मा ।
(743) पापारण्यदवानला - पापरूपी अरण्यको जलानेके लिये अग्नीरूप मा ।
(744) दौर्भाग्यतुलवातूला - दुर्भाग्यको तिनकेकी तरह उडालेवाली वायु रूप मा ।
(745) जराध्वान्तरविप्रभा - वृध्द अवस्थाके अज्ञान अन्धकारसे होते हुए दुःख्खके लिये सूर्यके प्रकाश रूपी मा ।
(746) भाग्याब्धिचन्द्रिका - सौभाग्यके सागरके भरतीको चन्द्रके समान मा ।
(747) भक्तचेतिघनाघना - भक्तोंके चित्त रूपी मोरके लियेबादलरूप मा ।
(748) रोगपर्वतदम्भोली - रोगके पर्वतके लिये वज्ररूप मा ।
(749) मृत्युदारूकुठारिका - मृत्युरूपी वृक्ष को काटनेके लियेकुठार स्वरूप मा ।
(750) महेश्वरी - भगवान श्री शिवजीके भक्तिस्वरूप मा ।
(751) महाकाली - कालसे भी परे महाकाली देवीके रूपमे मा ।
(752) महाग्रासा - विश्वको एकही ग्रासमे समाप्त करनेमे महाग्रास स्वरूप मा ।
(753) महाशना - अपनेमे सारे जगतको समा लेनेवाली मा ।
(754) अपर्णा - भक्तोंके ऋणसे  जल्दी मुक्त होनेवाली मा ।
(755) चंडिका - भक्तोंको सतानेवाले दुष्ट लोगोंपर क्रोध करनेवाली मा ।
(756) चण्डमुण्डासुरनिषूदिनी - चण्ड और मुण्ड नामके राक्षसोंका नाश करनेवाली मा ।
(757) क्षराक्षरात्मिका - क्षर(नाशवान) और अक्षर(नाशरहित) की आत्मस्वरूप मा ।
(758) सर्वलोकेशी - सब लोकोंकी ईश्वरी मा ।
(759) विश्वधारिणी - विश्वको धारण करनेवाली मा ।
(760) त्रिवर्गदात्री - धर्म, अर्थ और काम के त्रिवर्गके सब सुखोंको देनेवाली मा ।
(761) सुभगा - सद् भाग्य और सौभाग्य देनेवाली मा ।
(762) त्र्यम्बका -तीनो मार्गोंसे जानेवाले भक्तोंकी आंख रूप मा ।
(763) त्रिगुणात्मिका - सत् , रज  और तम इन तीन गुणोंकी आत्मा स्वरूप मा ।
(764) स्वर्गापवर्गदा - स्वर्ग और मोक्ष देनेवाली मा ।
(765) शुध्दा - पवित्र भक्तोंको सदा पवित्र रखनेवाली मा ।
(766) जपापुष्पनिभाकृतिः - जपापुष्प जैसी कोमल और सुन्दर मा ।
(767) ओजोवती - ओजयुक्त महान तेजवाली मा ।
(768) द्युतिधरा - भक्तोंके लेये प्रकाश रूप मा ।
(769) यज्ञरूपा - यज्ञका स्वरूप मा ।
(770) प्रियव्रता - जिन्हे व्रत वैकल्य प्रिय है वह मा ।
(771) दुराराध्या - मुश्किलसे आराधित मा ।
(772) दुराधर्षा - मुश्किलसे ध्यानमे आनेवाली मा । संयम रखनेकी आवश्यकताके कारण कठिनाईसे मिलनेवाली मा ।
(773) पाटलीकुसुमप्रिया - जिन्हे पाटला यानी गुलाबके फूल प्रिय है वह मा ।
(774) महती - नारदकी वीणामें निवास करनेवाली मा ।
(775) मेरूनिलया - मेरू पर्वतपर निवास करनेवाली मा ।
(776) मन्दारकुसुमप्रिया - मंदार फुलोंकी प्रिय मा ।
(777) वीराराध्या - वीर लोग जिनकी आराधना करते है वह मा ।
(778) विराड्रुपा- विराट स्वरूप मा ।
(779) विरजा - मनोविकारसे रहित मा ।
(780) विश्वतोमुखी - सारे विश्वकी तरफ मुख फैलानेवाली मा ।
(781) प्रत्यगरूपा -भक्तोंको अंतर्मुख कराने वाली मा ।
(782) पराकाशा - आकाशसे भी परे मा ।
(783) प्राणदा - प्राण देनेवाली मा ।
(784) प्राणरूपिणी - प्राणका स्वरूप मा ।
(785) मार्तण्डभैरवाराध्या - मार्तण्डभैरवसे आराधित मा ।
(786) मन्त्रिण्यस्तराज्यधूः - मन्त्र जाप करनेवाले भक्तको राज्य सौंपनेवाली मा ।
(787) त्रिपुरेशी - श्रीचक्रमें स्थित सर्वशापरिपूर चक्रकी स्वामिनी स्वरूप मा ।
(788) जयत्सेना - जय करनेवाली सेनायुक्त मा ।
(789) निस्त्रैगुण्या - त्रिगुणसे प्रिया ।
(790) परापरा - अपना, पराया, दोस्त और दुष्मनोंकी मा ।
(791) सत्यज्ञानानन्दरूपा - सत्य, ज्ञान और आनन्दका रूप मा ।
(792) सामरस्यपरायणा - भक्तोंको समान स्थिती देनेवाली मा ।
(793) कपर्दिनी - गुंथेहुए बालोंवाली मा ।
(794) कलामाला - सब कलाओंकी माला मा ।
(795) कामधुक् -कामधेनु गौ रूप मा ।
(796) कामरूपिणी - ईच्छाओंको उत्पन्न करनेवाली , पूरी करनेवाली और नाश करानेवाली मा ।
(797) कलानिधी - सब कला और विज्ञानकी खान मा ।
(798) काव्यकला - काव्य और कला स्वरूप मा ।
(799) रसज्ञा - सब रसोंकी ज्ञाता मा ।
(800) रसशेवधिः - सब रसोंका भण्डार स्वरूप मा ।

यह ललिता सहस्रनाम भाष्य संत श्री माईजी महाराज जीके पुस्तकोंकी आधारसे किया है ।
पता - माई निवास, सरस्वती रस्तेके अंतीम भागपर स्थित, सारस्वत कोलोनी,  सांता क्रुझ ( पश्चिम ) मुम्बई 400054

ललिता सहस्रनामोंकी अधिक जानकारीके लिये कृपया निम्न लिंक्स देखिये - http://maiism.blogspot.com/

http://mohankharkar.wordpress.com/

http://www.tumblr.com/blog/mohankharkar

http://universalreligionmaiism.blogspot.in/

Tuesday 18 November 2014

Names 601 to 700



(601) दरान्दोलितदीर्घाक्षी - धीरेसे डोलती हुई  बडी आखोंवाली मा ।
(602) दरहसोज्ज्वलन्मुखी - हास्यसे उज्ज्वल मुखवाली मा ।
(603) गुरूमूर्तिः - गुरूस्वरूप मा ।
(604) गुणनिधि - गुणोंका भण्डार मा ।
(605) गोमाता - कामधेनु स्वरूप मा ।
(606) गुहजन्मभूः - कार्तिकस्वामीको जन्म देनेवाली मा जिनका अंश है वह मा ।
(607) देवेशी - देवताओंकी ईश्वरी मा ।
(608) दण्डनीतिस्था - भक्तोंको सुधारनेके लिये उसको उसके अपने प्रारब्ध अनुसार दण्ड देकर उसको नीतिकी राहपि लानेवाली मा ।
(609) दहराकाशरूपिणी - हृदयमे स्थित सुक्ष्म आकाशरूपी मा ।
(610)प्रतिपन्मुख्यराकान्ततिथिमण्डलपूजिता - मासके प्रतिपदा तिथीसे अमावस्या तिथीतक ( विविध देवताओंके स्वरूपमे ) पुजने जानेवाली मा ।
(611) कलात्मिका - सब कलाओंकी आत्मा मा ।
(612) कलानाथा - सब कलाओंकी  स्वामिनी मा ।
(613)काव्यालापविनोदिनी - अपने भक्तोंको काव्यालाप विनोदसे बहलानेवाली मा ।
(614) सचामररमावाणीसव्यदक्षिणसेविता - दायी ओर लक्ष्मी और बायी ओर सरस्वती पंखोंसे हवा चलानेकी सेवा करनेके लिये स्थत है वह मा ।
(615) आदिशक्तिः - विश्वको रचनेवाली सबसे पहले शक्तिके स्वरूपमे मा ।
(616) अमेया - न नापी जानेवाली मा ।
(617) आत्मा - हर एक जीवमें आत्मस्वरूपमे स्थित मा ।
(618) परमा - सबसे परे मा ।
(619) पावनाकृतिः - पावन आकृति वाली मा । जिनके आकृतिके दर्शनमात्रसे मनुष्य पावन हो जाता है वह मा ।
(620) अनेककोटिब्रहृ्माण्डजननी - अनेक कोटि ब्रह्माण्डोंकी जननी मा ।
(621) दिव्यविग्रहा - दिव्य शरीरवाली मा ।
(622) क्लींकारी - क्लीं इस बीज मन्त्रके जपनेसे साधकका  कल्याण करनेवाली मा ।
(623) केवला - केवल एक ही मा ।
(624) गुह्या - कोई  ज्ञानी भी जिनका पार नही पा सकता वह मा ।
(625) कैवल्यपददायिनी - कैवल्य ( आखरी मुक्ति ) प्रदान करनेवाली मा ।
(626) त्रिपुरा - भिन्न भिन्न त्रिपुटीयोंकी ( जैसे कि ब्रह्मा, विष्णु महेश यह  देवताओंकी त्रिपुटी, सत्व, रज, तम यह गुणोंकी त्रिपुटी इस प्रकार  अनेक त्रिपुटीयोंकी  मा ।
(627) त्रिजगवन्द्या - तीन प्रकारके जगतोंसे ( स्वर्ग, भुमी, पाताल)  वन्दित मा ।
(628) त्रिमूर्तिः - ब्रह्मा, महेश और विष्णुरुप मा ।
(629) त्रिदशेश्वरी - जाग्रृत, स्वप्न और निद्रा इन दशाओंकी ईश्वरी मा ।
(630) त्र्यक्षरी - तीन अक्षरोंका ( अ,उ,म  या  बीज मन्त्र एें, ह्रीं, क्लीं  इन अक्षरोंके रूमे मा ।
(631) दिव्यगन्धाढ्या - जिनमें दिव्य सुगन्ध स्थित है वह मा ।
(632) सिन्दूरतिलकांचिता - गजकी गतिवाली स्त्रीयोंसे पूजित मा ।
(633) उमा - पार्वतीके स्वरूपमे मा ।
(634) शैलेन्द्रतनया - हिमालयकी बेटी मा ।
(635) गौरी - गौरी शक्ती रूप मा ।
(636) गन्धर्वसेविता - गंधर्वोंसे सेवित मा ।
(637) विश्वगर्भा - अनेक विश्वोंको अपने गर्भमे धारण करनेवाली मा ।
(638) स्वर्णगर्भा - सुवर्णके अण्डोंके रुपमे विश्वोंको धारण करनेवाली मा ।
(639) अवरदा - सुख दुख्ख, पाप पुण्य का वरदान देनेवाली मा ।
(640) वागधीश्वरी - भाषाकी देवी सरस्वतीके रुपमे मा ।
(641) ध्यानस्था - ध्यानसे मिलनेवाली मा ।
(642) अपरिच्छेद्या - कार्यकारण सम्बनध, भुत भविष्य और वर्तमानके भेद, स्थल और अवकाशके अन्तर, इन तीनोंसे  परे मा ।
(643) ज्ञानदा - ज्ञान प्रदान करनेवाली मा ।
(644) ज्ञानविग्रहा - मूर्तिमंत ज्ञानस्वरूप मा ।
(645) सर्ववेदान्तसंवेद्या -सब वेदोमें नेती नेती इस प्रकारसे वर्णित मा ।
(646) सत्यानंदस्वरूपिणी - सत्य और आनंद स्वरूप मा ।
(647) लोपामुद्रार्चिता - अगस्त्य ऋषीकी पत्नी लोपामुद्राने जिनकी आराधना की है वह मा ।
(648) लीलाक्लृप्तब्रह्माण्डमंडला - खेल खेलमेही ब्रहमाण्डकी रचना करनेवाली मा ।
(649) अदृश्या - अदृश्य है वह मा  , केवल अपनी ईच्छामात्रसे वह अपने भक्तोंको अपना दर्शन करा देती है वह मा ।
(650) दृश्यरहिता -खुली बातसे भक्तको विमुख रखकर,भक्तको कर्तापनमे ( मै करता हूं ) - इस
 अभिमानके भ्रममें डालके, मजा देखनेवाली मा ।
(651) विज्ञात्री - अनुभव सिध्दि ज्ञान देनेवाली मा । सबकुछ जाननेवाली मा ।
(652) वेद्यवर्जिता - जाननेयोग्य जो कुछभी है , उससे भी परे मा ।
(653) योगिनी  - भक्तोंको आपसमे और अपनेमे मेल करानेवाली मा ।
(654) योगदा - योग देनेवाली मा ।
(655) योग्या - योगका सार मा ।
(656) योगानन्दा - योगका आनंद देने वाली मा ।
(657) युगंधरा - भक्तोंका बोजा  उठानेवाली मा ।
(658) इच्छाशक्तिज्ञानशक्तिक्रियाशक्तिस्वरूपिणी - इच्छा, ज्ञान और क्रिया इन शक्तियोंका स्वरूप मा ।
(659) सर्वधारा - सबका आधार मा ।
(660) सुप्रतिष्ठा - भक्तोंको किर्ती देनेवाली और भक्तिमें स्थिर रखनेवाली मा ।
(661) सदसद्रुपरूपधारिणी - सत् और असत् रूप धारण करनेवाली मा ।
(662) अष्टमूर्ति - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुध्दी और अहंकार आठ तत्वोंका स्वरूप मा ।
(663) अजाजैत्री - भक्तोंको अविद्या पर विजय पानेकी शक्ति देनेवाली मा ।
(664) लोकयात्राविधायिनी - चौदह लोकोंकी यात्राकी पथदर्शक मा ।
(665) एकाकिनी - एक ही एक मा ।
(666) भुमरूपा - सब वस्तुओंका संग्रहरूप मा ।
(667) निर्द्वैता - द्वैत रहित मा ।
(668) द्वैतवर्जिता - द्वैतसे परे मा ।
(669) अन्नदा - अन्न देनदवाली मा ।
(670) वसुदा - दौलत देनेवाली मा ।
(671) वृध्दा - सबसे वृध्द ( सबसे पहली ) मा ।
(672) ब्रह्मात्म्यैक्यस्वरूपिणी - ब्रह्मा और जीवकी एकता करनेवाली मा ।
(673) बृहति  - महान शक्तिशाली मा ।
(674) ब्राह्मणी - ब्राह्मणस्वरूप पूर्ण सात्विक मा ।
(675) ब्राह्मी - ब्रह्मके स्त्रीलिंगके नामसे नामसे कही जानेवाली मा ।
(676) ब्रह्मानंदा - ब्रह्मका आनंद देनेवाली मा ।
(677) बलिप्रिया - बलवानोंकी प्रिय मा ।
(678) भाषारूपा - सब भाषाओंका रुप ।
(679) बृहत्सेना - महान शक्तिशाली सेनावाली मा ।
(680) भावाभावविवर्जिता - स्थिति = अस्ति और नास्ति से परे मा ।
(681) सुखाराध्या - सुखसे आराधना करनेपरभी प्रसन्न होनेवाली मा ।
(682) शुभकरी - शुभ करनेवाली मा ।
(683) शोभनासुलभागति - भक्तोंको सुलभगति देनेवाली मा ।
(684) राजराजेश्वरी - बडेसे बडे राज्योंकी राणी मा ।
(685) राज्यदायिनी - राज्य प्रदान करनेवाली मा ।
(686) राज्यवल्लभा - भक्तोंको राज्यवल्लभ बनानेवाली मा ।
(687) राजत्कृपा - दया से दैदीप्यमान मा ।
(688) राजपीठनिवेशितनिजाश्रिता - अपने आश्रितोंको राजगद्दीपर बिठानेवाली मा ।
(689) राज्यलक्ष्मी - राज्यलक्ष्मी का रूप और लक्ष्मी देनेवाली मा ।
(690) कोशनाथा -विश्वके सभी भण्डारोंकी मालिक मा ।
(691) चतुरंगबलेश्वरी - चार प्रकारकी सेनाओंपर अधिपत्य रखनेवाली मा ।
(692) साम्राज्यदायिनी - साम्राज्य देनेवाली मा ।
(693) सत्यसंधा - सत्यकी तरफदारी करनेवाली मा ।
(694) सागरमेखला - सागरसे घिरी हुई मा । सागर जिनके कमरमें बन्द है वह मा ।
(695) दीक्षिता - भक्तोंको दीक्षा देनेवाली मा ।
(696) दैत्यशमनी - दैत्योंका पराजय करनेवाली मा ।
(697) सर्वलोकवशंकरी - सभी लोकोंको वशमे करनेवाली मा ।
(698) सर्वार्थदात्री - सर्व कामनाओंकी सिध्दी देनेवाली मा ।
(699) सावित्री - ब्रह्माकी पत्नी सावित्री जिनका अंश है वह मा ।
(700) सच्चिदानन्दरूपिणी - सत् , चित और आनंद का रूप मा ।

यह ललिता सहस्रनाम भाष्य संतश्रेष्ठ श्री माईजी महाराजकी लिखी हुई पुस्तकोंकी आधारसे किया है । पता - माई निवास मंदीर, सरस्वती रस्तेके अंतिम भागमें स्थित, सांता क्रुझ ( पश्चिम ), मुम्बई 400054 भारत
For further details  about these Mother's Thousand Names , please visit the following links :
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Thursday 13 November 2014

Names 501 to 600




 *(501) गुडान्नप्रीतमानसा - गुडसे बनाये हुए मीठे अन्न जिन्हे प्रीय है वह मा ।

 *(502) समस्तभक्तसुखदा - अपने सब भक्तोंको सुख प्रदान करनेवाली मा ।

 *(503) लाकिन्यम्बास्वरूपिणी - लाकिनी नाम माताजी जिनका स्वरूप है वह मा ।

 *(504) स्वाधिष्ठानाम्बुजगता - उदरमे स्थित स्वाधिष्ठान चक्रमें जिनका वास है वह मा ।

 *(505) चतुर्वक्त्रमनोहरा - चार मुहोंसे जो सुशोभित है वह मा ।

(506) शुलाध्यायुधसंपन्ना -  जिनके हाथमें त्रिशुल आदि आयुध है वह मा ।

(507) पीतवर्णा - जिनका वर्ण पीला है वह मा ।

 *(508) अतिगर्विता - बहुत गर्ववाली मा ।

(509) मेदोनिष्ठा - चर्बीके उपर आधिपत्य रखनेवाली मा ।

 *(510) मधुप्रीता - जिन्हे मध ( शहद ) प्रीय है वह मा ।

 *(511) बन्धिन्यादिसमन्विता - बन्दिनी आदी शक्तिया सेवित मा ।

(512) दध्यन्नासक्तह्रदया - जिन्हे दहीसे युक्त पदार्थ प्रिय है वह मा ।

 *(513) काकिनीरूपधारिणी - काकिनी शक्तिका रूप धारण करनेवाली मा ।

(514) मूलधाराम्बुजारूढा -मुलाधार चक्रमे विराजित मा ।

 *(515) पंचवक्त्रा - पाच वदनवाली मा ।

 *(516) अस्थिसंस्थिता - हड्डीयोंपर अधिपत्य रखनेवाली मा ।

 *(517) अंकुशादिप्रहरणा - अंकुश आदिसे विभूषित मा ।

(518) वरदादिनिषेविता - वरदा आदि शक्तियोंसे सेवित मा ।

 *(519) मुदगौदनासक्तचित्ता - मूंगकी दालके पदार्थ जिन्हे प्रिय है वह मा ।


 *(520) साकिन्यम्बास्वरूपिणी -साकिनी देवीका रूप धारण करनेवाली मा ।

*(521) आज्ञाचक्रब्जनिलया - आंखोंके भौंहोके बीच आज्ञाचक्रमे स्थित मा

*(522) शुक्लवर्णा - श्वेत ( स॑फेद ) रंग वाली मा ।

*(523) षडानना - छः मुखोंवाली मा ।

*(524) मज्जसंस्था - मज्जसंस्था पर अधिपत्य रखनेवाली मा ।

*(525) हंसवतीमुख्यशक्तिसमन्विता - जनमे हंसवती नामकी शक्ति मुख्य है एैसी शक्तियोंसे युक्त मा ।

*(526) हरिद्रान्नेकरसिका - जिन्हे हल्दीके अन्नपदार्थ प्रिय है वह मा ।

*(527) हाकिनीरुपधारिणी - हाकिनी देवीका रुप धारण करनेवाली मा ।

*(528) सहस्रदलपद्मस्था - सहस्र दल कमलमे स्थित मा ।

*(529) सर्ववर्णोपशोभिता - सर्व रंगोंसे शोभित मा ।

*(530) सर्वायुधधरा - सब प्रकारके शस्त्र धारण करनेवाली मा ।

*(531) शुक्लसंस्थिता - जिनका वीर्यपर अधिपत्य वह मा ।

*(532) सर्वतोमुखी - सभी दिशाओंकी तरफ अपना मुख किया है एैसी मा ।

*(533) सर्वोदनप्रीतचित्ता - जिन्हे सब प्रकारके खाद्य प्रकार प्रिय है वह मा ।

*(534) याकिन्यम्बास्वरुपिणी - याकिनी देवीका रुप धारण करनेवाली मा ।

*(535) स्वाहा - देवताओंको आहुती पहुंचानेवाली मा ।

*(536) स्वधा - पितरोंको श्राद्द अन्न पहुंचानेवाली मा ।

*(537) अमति - पापी, दुष्ट या कपटी लोगोंका उस ( पाप, दुष्ट, या कपट )  बुध्दिरुप मा ।

*(538) मेधा - महान बुध्दीका स्वरूप मा ।

*(539) श्रुति - श्रुतीका स्वरूप मा ।

*(540) स्मृति - स्मृतिका स्वरूप मा ।

*(541) अनुत्तमा - उत्तमोंसे भी उत्तम मा ।

*(542) पुण्यकिर्ती - जिनकी किर्तीका गुणगान पुण्य प्रदान करनेवाला है वह मा ।

*(543) पुण्यलभ्या - पुण्यसेही जिनकी कृपाका लाभ होता है वह मा ।

(544) पुण्यश्रवणकीर्तना - जिनके गुणगानके श्रवणमात्रसे पुण्यप्राप्ती होती है वह मा ।

*(545)पुलोमजार्चिता -इन्द्रपत्नी (पुलोमा) ने जिनकी पूजाअर्चा करती है वह मा ।

*(546) बन्धमोचनी - कारागृह या संसारिक या किसीभी प्रकारके बन्धनसे छुडानेवाली मा ।

*(547) बर्बरालका - घुंगराले केशोवाली मा ।

*(548) विमर्षरूपिणी - ब्रह्म या विश्वके प्रथम क्षोभका स्वरूप मा ।

*(549) विद्या - कर्म, ज्ञान और भक्तिसे माया का बन्धन तोडकर पराभक्ती और मुक्तिके मार्गपर ले जानेवाली विद्याका स्वरुप मा ।

*(550) वियदादिजगत्प्रसुः - आकाशादि तत्त्व, जगतको जिन्हे निर्माण किया है वह मा ।

(551) सर्वव्याधिप्रशमनी - सर्व प्रकारकी व्याधियोंको नष्ट करनेवाली मा ।

(552) सर्वमृत्युनिवारिणी - सब प्रकारकी मृत्युओंका नाश करनेवाली मा ।

(553) अग्रगण्या -सबसे पहले याद आनेवाली मा ।

(554) अचिन्त्यरूपा - कल्पना और विचारमें न आ सकनेवाली मा ।

(555) कलिकल्मषनाशिनी - कलिकालमे सहज होनेवाले पापोंका नाश करनेवाली मा ।

(556) कात्यायिनी - कात्यायिनी देवीका स्वरूप मा ।

(557) कालहन्त्री - कालका नाश करनेवाली मा ।

(558) कमलाक्षनिषेविता - भगवान श्री विष्णुसे आराधित मा ।

(559) ताम्बूलपुरितमुखी - पानसे भरेहुए मुखवाली मा ।

(560) दाडिमीकुसुमप्रभा - अनारके फुल जैसे रंगवाली मा ।

(561) मृगाक्षी-हिरन जैसी आखोंवाली मा ।

(562) मोहिनी- विश्वको मोहित करनेवाली मोहिनी स्वरूप मा ।

(563) मुख्या - देवताओंमें मुख्य मा ।

(564) मृडानी - भगवान श्री शिवजीकी शक्ति मा ।

(565) मित्ररूपिणी - अपने भक्तके साथ मित्रततापुर्ण बर्थाव करनेवाली मा । भगवान श्रीसूर्यके स्वरूपमे मा ।

(566) नित्यतृप्ता - हमेशा तृप्त रहनेवाली मा ।

(567) भक्तनिधी - भक्तोंके लिये भण्डार स्वरूप मा ।

(568) नियन्त्री - भक्तको सन्मार्ग पर आगे ले जानेवाली मा ।

(569) निखिलेश्वरी - विश्वकी ईश्वरी मा ।

(570) मैत्र्यादिवासनालभ्या - विश्वमित्रता का भाव रखनेवाले अपने भक्तोंपर प्रसन्न रहनेवाली मा ।

(571) महाप्रलयसाक्षिणी - विश्वका महाप्रलय जब होता है उसकी साक्षी मा ।

(572) पराशक्तिः - नव शक्तियोंपर अधिपत्य रखनेवाली मा ।

(573) परानिष्ठा - जीवका आखरी ध्येय रूप मा ।

(574) प्रज्ञानघनरूपिणी - ज्ञान, विज्ञान और प्रज्ञानका निचोड स्वरूप मा ।

(575) माधवीपानालसा -अपने भक्तोंको प्रेममे बेहोश देखकर खुद मस्त हो जानेवाली मा ।

(576) मत्ता -अपने भक्तोंके प्रेममें मस्त हो जानेवाली मा ।

(577) मातृकावर्णरूपिणी - हरएक अक्षरका जो स्वर, वर्ण और कार्यशक्ति है उसका स्वरूप मा ।

(578) महाकैलासनिलया - महान कैलासपर निवास करनेवाली मा ।

(579) मृणालमृदुदोर्लता - कमलकी डण्डीजैसे कोमल बाहों वाली मा ।

(580) महनीया - महान मा । श्रेष्ठ मा ।

(581) दयामूर्ति - दयाकी मुर्तिमंत स्वरूप मा ।

(582) महासाम्राज्यशालिनी - महान साम्राज्यको देनेवाली मा ।

(583) आत्मविद्या- आत्मा संबंधी विद्याका स्वरूप मा ।

(584) महाविद्या - महान विद्या स्वरूप मा ।

(585) श्रीविद्या - श्रीचक्रके उपासनासे प्रसन्न होनेवाली मा ।

(586) कामसेविता - कामदेवसे सेवित मा ।

(587) श्रीषोडशाक्षरीविद्या -षोडशाक्षरी मन्त्रकी विद्या जिनका स्वरूप है वह मा ।

(588) त्रिकुटा - वाग्भवकूट, कामराजकूट और शक्तिकूट इन तीन कूटोमें रहनेवाली मा ।

(589) कामकोटिका - कोटी कामदेवोंसेभी सुंदर मा ।

(590) कटाक्षकिंकरीभूतकलाकोटीसेविता - अपने नेत्र कटाक्ष मात्रसे कोटी लक्ष्मीयोंको अपनी सेविका बनानेवाली मा ।

*(591) शिरस्थिता - सिरमें स्थित मा ।

*(592) चन्द्रनिभा - चन्द्रमा कैसे शान्ति देनेवाली मा ।

*(593) भालस्था - ललटमें स्थित मा ।

*(594) इन्द्रधनुप्रभा - इन्द्रधनुष्यकी अनेक रंगी प्रभा जैसे  अपने अनेक रंगोंसे भक्तके मनका हरण करनेवाली मा ।

*(595) ह्रदयस्था - भक्तके ह्रदयमे निवास करनेवाली मा ।

*(596) रविप्रख्या - सूर्य प्रकाश जैसी मा ।

*(597) त्रिकोणान्तरदीपिका -   श्रीचक्रके मध्य त्रिकोणमे  स्थित हुइ (बिन्दु स्वरूप) दीपक जैसे (ज्ञान )प्रकाश देनेवाली मा ।

*(598) दाक्षायणी - अपने भक्तका उध्दार करनेका कार्य करनेमें अत्यन्त दक्ष मा ।

*(599) दैत्यहन्त्री - दैत्योंके असुर भावका नाश करनेवाली मा ।

*(600) दक्षयज्ञविनाशिनी -  प्रजापती दक्षके यज्ञका नाश करनेवाली सती देवी स्वरूप मा ।

यह ललिता सहस्रनाम भाष्य संत श्री माईजी महाराजजीके पुस्तकोंके आधारपर कीया है । अधिक जानकारी के लिये कृपया निन्म लिखीत लिंक्सपर आवश्य भेट दीजिये -

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