Saturday 27 September 2014

Names 301 to 350



(301) र्‍हींकारी - नम्रता पैदा करनेवाली मा । र्‍हीं बीज मन्त्रके जपनेपर विद्या और ज्ञान देनेवाली मा ।
(302) र्‍हींमती - अपने भक्तको नम्रता आदि विचार और मति देनेवाली मा ।
(303) ह्रद्या - भक्तके ह्रदयके मालिक मा ।भक्तके ह्रृदयमे रहनेवाली मा ।
(304) हेयोपादेयवर्जिता - स्वीकार या अस्वीकारके भले या बुरेपनकी कल्पनासे परे मा ।
(305) राजराजार्चिता - राजाओंके राजाओंसे आराधित मा ।
(306) राज्ञी - राणियोंकी राणी मा ।
(307) रम्या - अति रमणी मा ।
(308) राजीवलोचना - कमल या हिरण जैसे आखोंवाली मा ।
(309) रंजनी - ह्रृदयको प्रसन्न करनेवाली मा ।
(310) रमणी - आनन्द देनेवाली मा ।
(311) रस्या - आनन्द रसका अनुभव करानेवाली मा ।
(312) रणत्किंकिणीमेखला - अपने कमरबन्दके मणीयोंके घण्टींयोंके बजनेसे भक्तोंको मुग्ध करनेवाली मा ।
(313) रमा - धन देनेवाली लक्ष्मी स्वरूपमे मा ।
(314) राकेन्दुवदना - पोर्णिमाके चन्द्रके मुखकमल जैसी मा 
(315) रतिरुपा - रतिका स्वरूप मा।
(316) रतिप्रिया - प्रेम करनेवाली और प्रेमीयोंकी प्रिय मा ।
(317) रक्षाकरी - रक्षा करनेवाली मा ।
(318) राक्षसघ्नी - दुष्ट वृत्तीया और षडरिपु राक्षसोंका नाश करनेवाली मा ।
(319) रामा - संसारके सर्व स्त्रीयों, वृध्द, सौन्दर्यहीन आदि भोली स्त्रीयोंके स्वरूपमे मा ।
(320) रमणलंपटा - अपने भक्तोंके साथ खेलनेमे बेपरवाह हो जानेवाली मा ।
(321) काम्या - जिस वस्तुकी कामना करनेसे जीव अपना जीवन जीता है उस कामना के स्वरूप मा ।
(322) कामकलारूपा - कामना और कलाका स्वरूप मा ।
(323) कदम्बकुसुमप्रिया - कदंबके फुलोंसे प्रसन्न होनेवाली मा ।
(324) कल्याणी - भक्तोंका कल्याण करनेवाली मा ।
(325) जगतीकन्दा - जगतका बीजरूप मा ।
(326) करूणारससागरा - करूणारसका समुद्र मा ।
(327) कलावती - सब कलाओंसे परिपूर्ण मा ।
(328) कलालापा - बाते करनेमे कुशल मा।
(329) कांता - कांति और सुंदरताका स्वरूप मा ।
(330) कादंबरीप्रिया - भक्तोंसे कल्पित प्रेमकी शौकीन मा ।
(331) वरदा - वर देने वाली मा ।
(332) वामनयना - भक्तोंको प्रेमसे तिरछी निगाहोंसे देखनेवाली मा ।
(333) वारूणीमदविव्हला - जिनकी कृपासे, शेषनाग पृथ्वीके अनेक पापरूपी भारको उठानेपरभी व्याकुल नही होता , वह मा ।
(334) विश्वाधिका - सारे वीश्वसे परे मा ।
(335) वेदविद्या- विदविद्याका स्वरूप, वेदविद्या सिखानेवाली और उसके ज्ञानको पुर्ण करनेवाली मा ।
(336) विन्ध्याचलनिवासिनी - विन्ध्याचल पर्वतोंपर निवास करनेवाली मा ।
(337) विधात्री - सबकी विधाता मा । जीवोंको उनके संकल्पके अनुसार, उनकी अंतीम गती देनेवाली मा ।
(338) वेदजननी - वेदोंकी जननी मा ।
(339) विष्णुमाया - सर्वव्याप्त प्रेमस्वरूप मा ।
(340) विलासिनी - भक्तोंसे विलास करनेवाली मा ।
(341) क्षेत्रस्वरूपा - शरीरके सब अवयवोमें चैतन्य स्वरूप मा ।
(342) क्षेत्रेशी - शरीरके सब अवयवोंकी जीवात्मा (शिव) स्वरुपमे मा ।
(343) क्षेत्रक्षेत्रज्ञपालिनी - जीव और शिव (आत्मा)का पालनपोषण करनेवाली मा ।
(344) क्षयवृध्दीविनिरमुक्ता - घटने  और बढनेसे मुक्त मा ।
(345) क्षेत्रपालसमर्चिता - विश्वके पालक क्षेत्रपालसे आराधित मा ।
(346) विजया - भक्तको विजय दिलानेवाली मा ।
(347) विमला - निर्मल मा । भक्तके चरित्रको निर्मल बनानेवाली मा ।
(348) वन्द्या - पूजनीय मा ।
(349) वन्दरूजनवत्सला - वन्दन करनेवाले भक्तपर वात्स्यल्य भाव रखनेवाली मा ।
(350) वाग्वादिनी - भक्तोंके मुखमे सरस्वतीके रूपमे निवास करनेवाली मा ।

यह ललिता सहस्रनाम भाष्य संत श्री माईजी महाराजकी लिखी हुई पुस्तकोंके आधारपर कीया है । अधिक जानकारीके लिये कृपया देखे -
http://universalreligionmaiism.blogpot.in/ 

 श्री ललितासहस्रनामों का अधिक विवरण देखनेकेलिए : -
http://maiism.blogpot.com/
 तथा अधिक जानकारीके लिये कृपया देखे -
http://mohankharkar.wordpress.com/
http://www.tumblr.com/blog/mohankharkar3

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