Monday 21 July 2014

Names : 51 to 100



(51) सर्वाभरणभूषिता - सर्व प्रकारके आभूषणोंसे अलंकृत मा ।
(52) शिवकामेश्वरांकस्था - भक्तकी गोदमे बेटीकी तरह बैठ जानेवाली मा ।
(53) शिवा - कल्याण करनेवाली मा ।
(54) स्वाधीनवल्लभा - भक्तके (स्त्री वा पुरूष) वल्लभ(प्रेमी)को भक्तके आधीन करनेवाली मा ।
(55) सुमेरूश्रृंगमध्यस्था - सुमेरू पर्वतके चोटीयोंके बाीच रहनेवाली मा ।
(56) श्रीमन्नगरनायिका - श्री नगरकी नायिका महाराणी मा ।
(57) चिन्तामणिगृहान्तस्था -चिन्तामणियोंसे बने हुए महलमे रहनेवाली मा ।
(58) पंचब्रह्मासनस्थिता - ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इश्वर और सदाशिव नामके पांच ब्रह्म रूपी खाटके पाव रूपी आसनपर विराजित मा ।
(59) महापद्माटवीसंस्था - कमलोंके बडे उपवनमे रहनेवाली मा ।
(60) कदंबवनवचासिनी - कदंब वनमे बसनेवाली मा ।
(61) सुधासागरमध्यस्था - अमृतके सागरके बीच रहनेवाली मा ।
(62) कामाक्षी - जिनको अपने भक्त अपने आखोंके समान प्रिय है वह मा । कामदेवजैसी आखोवाली मा ।
(63) कामदायिनी - सभी कामनाओंको पूर्ण करनेवाली मा ।
(64) देवर्षिगणसंघातस्तूयमानात्मवैभवा - देव और ऋषीगणोंका समूह जिनके वैभवका गुणगान करते है वह मा ।
(65) भण्डासुरवधोद्युक्तशक्तिसेनासमन्विता- भण्डासुरका वध करनेके लिए भिन्न भिन्न शक्तियोंकी सेना समेत तैयार है एेसी मा ।
(66) संपत्करीसमारूढसिंधूरव्रजसेविता - संपत्करीके नेतृत्वमें रहते हुए हाधियोंके झुण्डोंसे सेवित मा ।
(67) अश्वारूढधिष्ठिताश्वकोटिकोटिभिरावृता - अश्वारूढाके हाथ नीचे रहते हुए करोडो अश्वोंसे घिरी हुई मा।
(68) चक्रराजराजरथारूढसर्वायुधपरिष्कृता - चक्रराज नामवाले रथपर आरूढ होकर युध्दके लिए सर्व अस्त्र शस्त्र सहित तैयार मा ।
(69) गेयचक्ररथारूढमन्त्रिणीपरिसेविता - गेयचक्रपर आरूढ हुई मन्त्रिणी देवीसे सेवित मा ।
(70) किरिचक्ररथारूढदण्डनाथापुरस्कृता - किरिचक्र नामक रथपर सवार हुई दण्डनाथ शक्तिको आगे रखनेवाली मा ।
(71) ज्वलामालिनिकाक्षिप्तवन्हिप्राकारमध्यगा - जिसमेसे अग्नीकी चिनगारियां उडती रही है एेसे  अग्नीके ज्वालाके बीच रहनेवाली मा ।
(72) भण्डसैन्यवधोद्युक्तशक्तिविक्रमहर्षिता -भण्डासुरके सेनाको मारनेके लिये तैयार शक्तीयोंका बल देखकर प्रसन्न मा ।
(73) नित्यापराक्रमाटोपनिरीक्षणसमुत्सुका - अपने नित्याओंकी ( भक्तोंकी ) बढती हुई शक्तीको देखकर खुश होनेवाली मा ।
(74) भण्डपुत्रवधोद्युक्तबालाविक्रमनंदिता -भणडासुरके पुत्रोंको ( काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, मत्सर रूप पुत्रोंको ) मारनेको तैयार बालाशक्तीका पराक्रम देखकर प्रसन्न होनोवाली मा ।
(75) मन्त्रिण्यम्बाविरचितविषंगवधतोषिता - मन्त्रिणी शक्तीसे विषंग ( भेदभाव और असभ्यता ) का वध देखकर प्रसन्न होनेवाली मा ।
(76) विशुक्रप्राणहरणवाराहीवीर्यनंदिता - वाराही शक्तीसे विशुक्र ( निर्बलता )का प्राण हरण देखकर आनंदीत होनेवाली मा ।
(77) कामेश्वरमुखालोककल्पितश्रीगणेश्वरा - जिनके करूणा कटाक्षसे काम जितेन्द्र भक्तके ह्रदयमें विवेक संकल्पके स्वामी गणेश्वरका जन्म होता है वह मा ।
(78) महागणेसनिर्भिन्नविघ्नयन्त्रप्रहर्षिता - महागणेश( संकल्प, विवेक और सिध्दीका स्वामी )के विघ्न निवारण यंत्रको देखकर प्रसन्न होनेवाली मा ।
(79) भण्डासुरेन्द्रनिर्मुक्तशस्त्रप्रत्यस्त्रवर्षिणी - भण्डासुरके फेके हुए शस्त्रोंके जबाबमें अस्त्रोंकी वर्षा करनेवाली मा ।
(80) करांगुलिनखोत्पन्ननारायणदशाकृतिः - जिनके हाथोंके दस अंगुलीयोंके नखोंसे दस नारायण अवतीर्ण हुए वह मा ।
(81) महापाशुपतास्त्राग्निनिर्दग्धासुरसैनिका - महापाशुपत नामवाले अस्त्रकी अग्निसे षडरिपुरूपी असुरोंकी सेनाको जलानेवाली मा ।
(82) कामेश्वरास्त्रनिर्दग्धसभण्डसुरशून्यका - काम जितेन्द्रिय भक्तकी प्रेमाग्नीसे भण्डासुरको उसकी सेनासहित जलानेवाली मा ।
(83) ब्रह्मोपेन्द्रमहेन्द्रादिदेवसंस्तुता - ब्रह्मा,विष्णु, शिव, इन्द्र आदि देव गण जिनके वैभवकी महिमा गाते है वह मा ।
(84) हरनेत्राग्निसंदग्धकामसंजीवनौषधिः - भगवान श्रीशिवजीके नेत्रके अग्निसे जलकर भस्म हुए कामदेवताको पुर्नजीवन देनेवाली औषधीरूपी मा ।
(85) श्रीमद्वाग्भवकूटैकस्वरूपमुखपंकजा - जिनके दिव्य शरीरका कल्याणकारक उपरी तिसरा भाग (जिसको वाग्भवकूट कहा जाता है) जिसमे बुध्दि, ज्ञान, भाषा आदि शक्तिया रहती है और जिनके ध्यानसे भक्तको ज्ञानकी संपत्ती पूर्णतासे मिलती है एैसे सर्व शक्तियोंके युक्त मुखवाली मा ।
(86) कण्ठाधःकटिपर्यन्तमध्यकूटस्वरूपिणी - कण्ठसे कटि तकका मध्य भाग (जिन्हे कामराककूट कहा जा है) और जिसमें प्रेम,दया आदि शक्तिया पूर्णताको प्राप्त करती है एैसे कण्ठसे कटि तक अवयवोंवाली मा ।
(87) शक्तिकूटैकतापन्नकट्यधोभागधारिणी - कमरसे चरणों तकके (जिसको शक्तिकूट कहा जाता है और जिसमें कृपा, उत्साह, और स्फुरण आदि शक्तियोंका निवास है) ध्यानसे भक्तको दक्षता, कार्यसिध्दि जैसी शक्तिया पूर्णतासे प्राप्त होती है एैसे कमरसे चरणकमल तककी अवयवोवाली मा ।
(88) मूलमन्त्रात्मिका - सर्व मन्त्रोंकी मूल और मन्त्रोंके आत्मस्वरूप मा ।
(89) मूलकूटत्रयकलेवरा - उपर कहे हुए तीन कूटोंसे (वाग्भवकूट, कामराजकूट ओर शक्तिकूट) जिनका दिव्य शरीर बना है एेसी मा ।
(90) कलामृतैकरसिका -  मनुष्यके शरीरमे स्थित कुण्डलिनी शक्तिका अमृत रस सेवन करानेवाली मा ।
(91) कुलसंकेतपालिनी - भक्तके कुटुंब और कुलको और शास्त्रोंके संग्रहकी मर्यादा, लज्जा, किर्ती और मर्मकी रक्षा करनेवाली मा ।
(92) कुलांगना - अपने भक्तके कुलकी स्वामिनीके स्वरूपमे मा ।
(93) कुलान्तस्था - आपत्तीके समय अपने भक्त और उसके कुटुंबको अपना सहारा देकर उनका कल्याण करनेवाली मा ।
(94) कौलिनी - पूजन करनेवाले भक्तके कुलकी कल्याण करनेवाली मा ।
(95) कुलयोगिनी - अपने भक्तके संग्रहके याने कुलके रूपमे नये भक्तोंको मिलाकर कुल वृध्दी करानेवाली मा ।
(96) अकुला - जिनका कोई  विशीष्ठ और मर्यादीत कुल नही है एैसी मा । सभी कुलोमें जन्मे हुए मनुष्य मात्र की मा ।
(97) समयान्तस्था - संकटके समय भक्तोंके साथ रहनेवाली मा ।
(98) समयाचारतत्परा - अनुकुल अथवा प्रतीकूल अवस्थामे भक्तके द्वारा जो और जैसी कुछ साधना, उपासना हुई हो उसीसेभी प्रसन्न रहनेवाली मा ।
(99) मूलधारैकनिलया - मूलाधार चक्रमे विराजित मा ।
(100) ब्रह्मग्रन्थिविभेदिनी - ब्रह्मग्रन्थिको तोडनेवाल्री मा ।

संतश्रेष्ठ श्री माईजी द्वारा लिखित पुस्तकोंके आधारपर यह भाष्य लिखा हुआ है । अधिक जानकारीके लिये, कृपया संपर्क करे : UNIVERSAL MAIISM TRUST, MAI NIWAS, SARASWATI ROAD END, SANTA CRUZ ( WEST ), MUMBAI 400054, INDIA.

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