Friday 25 July 2014

Names : 101 to 150

(101) मणिपूरांतरूदिता - नाभिके समीप मणिपूर नामके चक्रमे निवास करनेवाली मा।
(102) विष्णुग्रन्थिविभेदिनी - विष्णुग्रंथीका भेदन करनेवाली मा ।
(103) आज्ञाचक्रांतरालस्था - भौहोंके बीचमे स्थित आज्ञाचक्रमे निवास करनेवाली मा ।
(104) रूद्रग्रंथिविभेदिनी - रूद्रग्रंथिको तोडनेवाली मा ।
(105) सहस्रारांबुजारूढा - हजार पंखोके कमलपर स्थित (आरूढ होनेवाली) मा ।
(106) सुधासाराबीवर्षिणी - अमृतकी धारा वर्षा करनेवाली मा ।
(107) तडिल्लतासमरूचिः - मूलाधारचक्रसे सहस्रारचक्रतक बीजलीके वेगसे जानेवाली मा ।
(108) षटचक्रोपरिसंस्थिता - छः चक्रोंके उपर स्थित मा ।
(109) महासक्तिः - भक्तोंपर आसक्ति रखनेवाली मा ।
(110) कुण्डलिनी - सर्पिणीके आकारमे मूलाधारचक्रमे रहनेवाली मा ।
(111) बिसतंतुतनीयसी -कमलके डण्डेके तार जैसी कोमल मा ।
(112) भवानी - भवसागरके परस्पर बन्धनोसे मुक्त करनेवाली मा ।
(113) भावनागम्या - भावना और ध्यानसे प्राप्त होनेवाली मा ।
(114) भवारण्यकुठारिका - भवसागरके बंधनको और जन्ममृत्युके दुःखरूपी वनको काटनेके लिए कुठारस्वरूप मा ।
(115) भद्रप्रिया - मांगल्य देकर और देखकर प्रसन्न होनेवाली मा ।
(116) भद्रमूर्तिः -जिनके आकृतिका दर्शन और मूर्ति अपनेआप कल्याणकारी है एैसी मा ।
(117) भक्तसौभाग्यदायिनी - भक्तको सौभाग्य प्रदान करनेवाली मा ।
(118) भक्तप्रिया - भक्त जिन्हे प्रिय है एैसी मा या भक्तिसे प्रसन्न होनेवाली मा ।
(119) भक्तिगम्या - भक्तिसे प्राप्त होनेवाली मा ।
(120) भक्तिवश्या - भक्तिसे वश होनेवाली मा ।
(121) भयापहा - भयको भगा देनेवाली मा ।
(122) शांभवी - शंभुके भक्तोंकी मा ।
(123) शारदाराध्या - श्रीसरस्वतीसे पूजित मा या जिनकी श्रीसरस्वती आराधना करती है वह मा । 
(124) शर्वाणी - पृथ्वी माताका स्वरूप मा ।
(125) शर्मदायिनी - सिध्दी, एैश्वर्य देकर कल्याण करनेवाली मा ।
(126) शांकरी - जिससे सुख प्राप्त होता है वैसा संयोग बना देनेवाली मा ।
(127) श्रीकरी - सिध्दी और एैश्वर्य देनेवाली और कल्याण करनेवाली मा ।
(128) साध्वी - साधु, संत और सतियोंसे प्रेम रखनेवाली मा ।
(129) शरच्चन्द्रनिभानना - शरद पोर्णिमाके चन्द्रके समान मुखवाली मा ।
(130) शातोदरी - पतले उदर (पेट)वाली मा । पतले उदर होनेपर भी अपने भक्तके कोटि अपराधोंको अपने पेटमें समा देनेवाली मा ।
(131) शांतिमती - शांती देनेवाली या शांति बुध्दी देनेवाली मा ।
(132) निराधारा - निराधारोंकी मा । भक्तोंको स्वावलंबी बना देनेवाली मा ।
(133) निरंजना - अपने भक्तोंको कलंकरहित और पूर्ण बना देनेवाली मा ।
(134) निर्लेपा - स्वयं निर्लेप होनेसे अपने भक्तोंको निर्लेप रखनेवाली मा ।
(135) निर्मला - अपने भक्तोंका ह्रदय निर्मल बना देनेवाली मा ।
(136) नित्या - जो अपने भक्तके विवेक बुध्दिको सनातन सत्यमें नित्य तथा स्थिर रखती है एैसी मा ।
(137) निराकारा - किसीभी आकारवाली नही या अनंत आकारोंवाली मा ।
(138) निराकुला - सांसारिक सुखके लिए जो आकुल रहते है एैसे लोगोंसे दूर स्थित रहनेवाली मा ।
(139) निर्गुणा - सत्व, रज और तम इन तीन गुणोंसे परे मा ।
(140) निष्कला -विभाग ओर अवयवों रहित मा ।
(141) शांता - अपने भक्तोंके सामने शांत स्वरूपमे प्रकट होनेवाली मा ।
(142) निष्कामा - काम रहित मा । अपने भक्तोंको कामरहित करनेवाली मा ।
(143) निरूपप्लवा - नाशरहित मा ।
(144) नित्यमुक्ता - सदा मुक्त मा । भक्तोंको स्थायी मुक्ती देनेवाली मा ।
(145) निर्विकारा - विकाररहित मा । भक्तोंको विकाररहित बना देनेवाली मा ।
(146) निष्प्रपंचा - भक्तोंको प्रपंचसे मुक्त करानेवाली मा ।
(147) निराश्रया - निराश्रयोंका आश्रय और निराशमें रहनेवालोकी आश्रय स्वरूप मा ।
(148) नित्यशुध्दा - हमेशा शुध्द मा । भक्तोंको नित्य शुध्द रखनेवाली मा ।
(149) नित्यबुध्दा - भक्तोंको नित्य विवेक बुध्दीसे और सावधानपुर्ण तथा स्मृतीपुर्ण रखनेवाली मा ।
(150) निरन्तरा - उंच नीच, पापी और पुण्यवानमें जो अंतर न रखती एैसी मा ।

संतश्रेष्ठ श्री माई स्वरूप माई मार्कण्ड ( श्रीमाईजी ) महाराजके पुस्तकोंपर आधारित यह सहस्रनाम भाष्यर्थ है । अधिक जानकारीके लिये कृपया संपर्क करे :  माई निवास, सरस्वती रस्तेके अंतीम भागपर स्थीत, सांता क्रुझ ( पश्चिम ), मुम्बई 400054.

http://maiism.blogspot.com/

http:universalreligionmaiism.blogspot.in/

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