*(501) गुडान्नप्रीतमानसा - गुडसे बनाये हुए मीठे अन्न जिन्हे प्रीय है वह मा ।
*(502) समस्तभक्तसुखदा - अपने सब भक्तोंको सुख प्रदान करनेवाली मा ।
*(503) लाकिन्यम्बास्वरूपिणी - लाकिनी नाम माताजी जिनका स्वरूप है वह मा ।
*(504) स्वाधिष्ठानाम्बुजगता - उदरमे स्थित स्वाधिष्ठान चक्रमें जिनका वास है वह मा ।
*(505) चतुर्वक्त्रमनोहरा - चार मुहोंसे जो सुशोभित है वह मा ।
* (506) शुलाध्यायुधसंपन्ना - जिनके हाथमें त्रिशुल आदि आयुध है वह मा ।
* (507) पीतवर्णा - जिनका वर्ण पीला है वह मा ।
*(508) अतिगर्विता - बहुत गर्ववाली मा ।
* (509) मेदोनिष्ठा - चर्बीके उपर आधिपत्य रखनेवाली मा ।
*(510) मधुप्रीता - जिन्हे मध ( शहद ) प्रीय है वह मा ।
*(511) बन्धिन्यादिसमन्विता - बन्दिनी आदी शक्तिया सेवित मा ।
* (512) दध्यन्नासक्तह्रदया - जिन्हे दहीसे युक्त पदार्थ प्रिय है वह मा ।
*(513) काकिनीरूपधारिणी - काकिनी शक्तिका रूप धारण करनेवाली मा ।
* (514) मूलधाराम्बुजारूढा -मुलाधार चक्रमे विराजित मा ।
*(515) पंचवक्त्रा - पाच वदनवाली मा ।
*(516) अस्थिसंस्थिता - हड्डीयोंपर अधिपत्य रखनेवाली मा ।
*(517) अंकुशादिप्रहरणा - अंकुश आदिसे विभूषित मा ।
* (518) वरदादिनिषेविता - वरदा आदि शक्तियोंसे सेवित मा ।
*(519) मुदगौदनासक्तचित्ता - मूंगकी दालके पदार्थ जिन्हे प्रिय है वह मा ।
*(520) साकिन्यम्बास्वरूपिणी -साकिनी देवीका रूप धारण करनेवाली मा ।
*(521) आज्ञाचक्रब्जनिलया - आंखोंके भौंहोके बीच आज्ञाचक्रमे स्थित मा
*(522) शुक्लवर्णा - श्वेत ( स॑फेद ) रंग वाली मा ।
*(523) षडानना - छः मुखोंवाली मा ।
*(524) मज्जसंस्था - मज्जसंस्था पर अधिपत्य रखनेवाली मा ।
*(525) हंसवतीमुख्यशक्तिसमन्विता - जनमे हंसवती नामकी शक्ति मुख्य है एैसी शक्तियोंसे युक्त मा ।
*(526) हरिद्रान्नेकरसिका - जिन्हे हल्दीके अन्नपदार्थ प्रिय है वह मा ।
*(527) हाकिनीरुपधारिणी - हाकिनी देवीका रुप धारण करनेवाली मा ।
*(528) सहस्रदलपद्मस्था - सहस्र दल कमलमे स्थित मा ।
*(529) सर्ववर्णोपशोभिता - सर्व रंगोंसे शोभित मा ।
*(530) सर्वायुधधरा - सब प्रकारके शस्त्र धारण करनेवाली मा ।
*(531) शुक्लसंस्थिता - जिनका वीर्यपर अधिपत्य वह मा ।
*(532) सर्वतोमुखी - सभी दिशाओंकी तरफ अपना मुख किया है एैसी मा ।
*(533) सर्वोदनप्रीतचित्ता - जिन्हे सब प्रकारके खाद्य प्रकार प्रिय है वह मा ।
*(534) याकिन्यम्बास्वरुपिणी - याकिनी देवीका रुप धारण करनेवाली मा ।
*(535) स्वाहा - देवताओंको आहुती पहुंचानेवाली मा ।
*(536) स्वधा - पितरोंको श्राद्द अन्न पहुंचानेवाली मा ।
*(537) अमति - पापी, दुष्ट या कपटी लोगोंका उस ( पाप, दुष्ट, या कपट ) बुध्दिरुप मा ।
*(538) मेधा - महान बुध्दीका स्वरूप मा ।
*(539) श्रुति - श्रुतीका स्वरूप मा ।
*(540) स्मृति - स्मृतिका स्वरूप मा ।
*(541) अनुत्तमा - उत्तमोंसे भी उत्तम मा ।
*(542) पुण्यकिर्ती - जिनकी किर्तीका गुणगान पुण्य प्रदान करनेवाला है वह मा ।
*(543) पुण्यलभ्या - पुण्यसेही जिनकी कृपाका लाभ होता है वह मा ।
(544) पुण्यश्रवणकीर्तना - जिनके गुणगानके श्रवणमात्रसे पुण्यप्राप्ती होती है वह मा ।
*(545)पुलोमजार्चिता -इन्द्रपत्नी (पुलोमा) ने जिनकी पूजाअर्चा करती है वह मा ।
*(546) बन्धमोचनी - कारागृह या संसारिक या किसीभी प्रकारके बन्धनसे छुडानेवाली मा ।
*(547) बर्बरालका - घुंगराले केशोवाली मा ।
*(548) विमर्षरूपिणी - ब्रह्म या विश्वके प्रथम क्षोभका स्वरूप मा ।
*(549) विद्या - कर्म, ज्ञान और भक्तिसे माया का बन्धन तोडकर पराभक्ती और मुक्तिके मार्गपर ले जानेवाली विद्याका स्वरुप मा ।
*(550) वियदादिजगत्प्रसुः - आकाशादि तत्त्व, जगतको जिन्हे निर्माण किया है वह मा ।
(551) सर्वव्याधिप्रशमनी - सर्व प्रकारकी व्याधियोंको नष्ट करनेवाली मा ।
(552) सर्वमृत्युनिवारिणी - सब प्रकारकी मृत्युओंका नाश करनेवाली मा ।
(553) अग्रगण्या -सबसे पहले याद आनेवाली मा ।
(554) अचिन्त्यरूपा - कल्पना और विचारमें न आ सकनेवाली मा ।
(555) कलिकल्मषनाशिनी - कलिकालमे सहज होनेवाले पापोंका नाश करनेवाली मा ।
(556) कात्यायिनी - कात्यायिनी देवीका स्वरूप मा ।
(557) कालहन्त्री - कालका नाश करनेवाली मा ।
(558) कमलाक्षनिषेविता - भगवान श्री विष्णुसे आराधित मा ।
(559) ताम्बूलपुरितमुखी - पानसे भरेहुए मुखवाली मा ।
(560) दाडिमीकुसुमप्रभा - अनारके फुल जैसे रंगवाली मा ।
(561) मृगाक्षी-हिरन जैसी आखोंवाली मा ।
(562) मोहिनी- विश्वको मोहित करनेवाली मोहिनी स्वरूप मा ।
(563) मुख्या - देवताओंमें मुख्य मा ।
(564) मृडानी - भगवान श्री शिवजीकी शक्ति मा ।
(565) मित्ररूपिणी - अपने भक्तके साथ मित्रततापुर्ण बर्थाव करनेवाली मा । भगवान श्रीसूर्यके स्वरूपमे मा ।
(566) नित्यतृप्ता - हमेशा तृप्त रहनेवाली मा ।
(567) भक्तनिधी - भक्तोंके लिये भण्डार स्वरूप मा ।
(568) नियन्त्री - भक्तको सन्मार्ग पर आगे ले जानेवाली मा ।
(569) निखिलेश्वरी - विश्वकी ईश्वरी मा ।
(570) मैत्र्यादिवासनालभ्या - विश्वमित्रता का भाव रखनेवाले अपने भक्तोंपर प्रसन्न रहनेवाली मा ।
(571) महाप्रलयसाक्षिणी - विश्वका महाप्रलय जब होता है उसकी साक्षी मा ।
(572) पराशक्तिः - नव शक्तियोंपर अधिपत्य रखनेवाली मा ।
(573) परानिष्ठा - जीवका आखरी ध्येय रूप मा ।
(574) प्रज्ञानघनरूपिणी - ज्ञान, विज्ञान और प्रज्ञानका निचोड स्वरूप मा ।
(575) माधवीपानालसा -अपने भक्तोंको प्रेममे बेहोश देखकर खुद मस्त हो जानेवाली मा ।
(576) मत्ता -अपने भक्तोंके प्रेममें मस्त हो जानेवाली मा ।
(577) मातृकावर्णरूपिणी - हरएक अक्षरका जो स्वर, वर्ण और कार्यशक्ति है उसका स्वरूप मा ।
(578) महाकैलासनिलया - महान कैलासपर निवास करनेवाली मा ।
(579) मृणालमृदुदोर्लता - कमलकी डण्डीजैसे कोमल बाहों वाली मा ।
(580) महनीया - महान मा । श्रेष्ठ मा ।
(581) दयामूर्ति - दयाकी मुर्तिमंत स्वरूप मा ।
(582) महासाम्राज्यशालिनी - महान साम्राज्यको देनेवाली मा ।
(583) आत्मविद्या- आत्मा संबंधी विद्याका स्वरूप मा ।
(584) महाविद्या - महान विद्या स्वरूप मा ।
(585) श्रीविद्या - श्रीचक्रके उपासनासे प्रसन्न होनेवाली मा ।
(586) कामसेविता - कामदेवसे सेवित मा ।
(587) श्रीषोडशाक्षरीविद्या -षोडशाक्षरी मन्त्रकी विद्या जिनका स्वरूप है वह मा ।
(588) त्रिकुटा - वाग्भवकूट, कामराजकूट और शक्तिकूट इन तीन कूटोमें रहनेवाली मा ।
(589) कामकोटिका - कोटी कामदेवोंसेभी सुंदर मा ।
(590) कटाक्षकिंकरीभूतकलाकोटीसेविता - अपने नेत्र कटाक्ष मात्रसे कोटी लक्ष्मीयोंको अपनी सेविका बनानेवाली मा ।
*(591) शिरस्थिता - सिरमें स्थित मा ।
*(592) चन्द्रनिभा - चन्द्रमा कैसे शान्ति देनेवाली मा ।
*(593) भालस्था - ललटमें स्थित मा ।
*(594) इन्द्रधनुप्रभा - इन्द्रधनुष्यकी अनेक रंगी प्रभा जैसे अपने अनेक रंगोंसे भक्तके मनका हरण करनेवाली मा ।
*(595) ह्रदयस्था - भक्तके ह्रदयमे निवास करनेवाली मा ।
*(596) रविप्रख्या - सूर्य प्रकाश जैसी मा ।
*(597) त्रिकोणान्तरदीपिका - श्रीचक्रके मध्य त्रिकोणमे स्थित हुइ (बिन्दु स्वरूप) दीपक जैसे (ज्ञान )प्रकाश देनेवाली मा ।
*(598) दाक्षायणी - अपने भक्तका उध्दार करनेका कार्य करनेमें अत्यन्त दक्ष मा ।
*(599) दैत्यहन्त्री - दैत्योंके असुर भावका नाश करनेवाली मा ।
*(600) दक्षयज्ञविनाशिनी - प्रजापती दक्षके यज्ञका नाश करनेवाली सती देवी स्वरूप मा ।
यह ललिता सहस्रनाम भाष्य संत श्री माईजी महाराजजीके पुस्तकोंके आधारपर कीया है । अधिक जानकारी के लिये कृपया निन्म लिखीत लिंक्सपर आवश्य भेट दीजिये -
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