Tuesday 2 December 2014

Names 801 to 900




(801) पुष्टा -भक्तोंके प्रेमके आनंदसे पुष्ट होनेवाली मा ।
(802) पुरातना - बहुत प्राचीन मा ।
(803) पूज्या - सबसे पूजिता मा ।
(804) पुष्करा - कमल जैसे कोमल मा ।
(805) पुष्करेक्षणा -महासागरमें पत्तेपर सोये हुएविष्णुकी रक्षा करनेवाली मा ।
(806) परंज्यतिः - महान ज्योति स्वरुप मा ।
(807) परंधाम - जो एक स्वयं महान धाम है वह मा ।
(808) परमाणुः - परमाणुका स्वरूप और परमाणुकाही साक्षी मा ।
(809) परात्परा - महानसेभी महान मा । पर, अपर और परात्परके स्वरूपमे मा ।
(810) पाशहस्ता - जनके हाथमे पाश है वह मा ।
(811) पाशहन्त्री - भक्तके संसारबंधनरुपी पाशका हनन करनेवाली मा ।
(812) परमन्त्रविभेदिनी - परमंत्रका ( जो भक्तोंके लिये दुख्खः दायक है) नाश करनेवाली मा ।
(813) मूर्ता - मूर्तिमंत मा ।
(814) अमूर्ता - आकार रहित मा ।
(815) अनित्यतृप्ता - बहुत थोडेसे प्रसन्न हो जानेवाली मा ।
(816) मुनिमानसहंसिका - मुनिकोंके मनरूपी मानस सरोवरमें हंसिका मा।
(817) सत्यव्रता - भक्तको सच्चे व्रतकी प्रेरणा करनेवाली मा ।
(818) सत्यरूपा - सत्यका स्वरूप मा ।
(819) सर्वान्तयामिणी - सबके अन्दरकी बात जाननेवाली मा ।
(820) सती - सती, भववान श्री शंकरकी पार्वती जिनका अंश है वह मा ।
(821) ब्रह्माणी- ब्रहमको पैदा करनेवाली मा ।
(822) ब्रह्म - ब्रह्म स्वरूप मा ।
(823) जननी - जन्म दनेवाली मा ।
(824) बहुरूपा - विविध रूपोमें मा ।
(825) बुधार्चिता - बुध्दीमान लोग जिनकी अर्चना करते है वह मा ।
(826) प्रसवित्री -प्रसव ( सृष्टी ) करनेवाली मा ।
(828) प्रचण्डा - दुष्टोंपर कोप करनेवाली मा ।
(829) आज्ञा - सबको आज्ञा सुनानेवाली मा ।
(830) प्रकटाकृतिः - सबके अनुभवमें आनेवाली आकृति वाली मा ।
(831) प्राणेश्वरी - प्राणकी ईश्वरी मा ।
(832) प्राणदात्री - ज्ञ्राण प्रदान करनेवाली मा ।
(833) पंचाशतपीठरूपिणी - श्रीचक्रमे पचास (50) अक्षरोमें हर एक अक्षरके लिये स्थान नियत किया हुआ है जहा एक एक अक्षररूपी शक्ति का निवास है ।एैसे पचास अक्षरोंके समुह श्रीचक्र श्रीयन्त्ररुपी मा । 
(834) विशृंखला - बन्धनरूपी जंजीरको तोडनेवाली मा ।
(835) विविक्तस्था - एकान्तमें रहनेवाली मा ।
(836) वीरमाता - वीरोंकी माता मा ।
(837) वियत्प्रसूः - आकाशको उत्पन्न करनेवाली मा ।
(838) मुकुन्दा - सब दुख्खोंसे छुडानेवाली मा ।
(839) मुक्तिनिलया - मुक्तिकी धाम मा ।
(840) मूलविग्रहरूपिणी - सब विग्रहोंका मूल मा ।
(841) भावज्ञा - भक्तोंके सब भावोंको जाननेवाली मा ।
(842) भवरोगघ्नी - भव संसार रूपी रोगका नाश करनेवाली मा ।
(843) भवचक्रप्रवर्तिनी - जन्म मरण आदि संसारका चक्र चलानेवाली मा 
(844) छन्दसारा - गायत्री मन्त्रका सार मा ।
(845) शास्त्रसारा - सब शास्त्रोंका सार मा ।
(846) मन्त्रसारा - सब मन्त्रोंका सार  मा ।
(847) तलोदरी - पतली कमरवाली मा ।
(848) उदारकीर्तिः - महान कीर्ति देनेवाली मा ।
(849) उदामवैभवा - विचारमें न आनेवाले वैभववाली मा ।
(850) वर्णरूपिणी - वर्ण (अक्षर) का स्वरूप मा ।
(851) जन्ममृत्युजरातप्तजनविश्रांतिदायिनी - जन्म मृत्यु और वृध्दावस्थाके दुख्ख इनसे विश्रांती देनेवाली मा ।
(852) सर्वोपनिषदुद् धुष्टा- सब उपनिषदोंसे घोषित मा ।
(853) शान्त्यतीताकलात्मिका - शांती पानकी कला देनेवाली मा ।
(854) गंभीरा - सागर जैसी गंभीर मा ।
(855) गगनान्तस्था - आकाशसे परे मा ।
(856) गर्विता - स्वाभिमानी मा ।
(857) गानलोलुपा - गायनकी प्रेमी मा ।
(858) कल्पनारहिता - कल्पनासे बाहर मा ।
(859) काष्ठा - स आत्माओंका केन्द्र और ध्येय मा ।
(860) अकान्ता - जिनका कोई कंत या पति नही वह मा ।
(861) कान्तार्धविग्रहा -भगवान श्री शिवजीकी अर्धांगी पार्वती जिनका अंश है वह मा ।
(862) कार्यकारणनिर्मुक्ता - कार्यकारण के सम्बन्धसे परे मा ।
(863) कामकेललितरंगिता - भक्तोंसे खेलनेके लिये तीव्र कामनावाली मा 
(864) कनत्कनकताटंका - कानोमें चमकते हुए कुण्डलों वाली मा ।
(865) लीलाविग्रहधारिणी - लीला करनेके लिये अने प्रकारके शरीर धारण करनेवाली मा ।
(866) अजा - जन्म रहित मा । 
(867) क्षयविनिर्मुक्ता - क्षय न होनेवाली या क्षयसे मुक्त  मा ।
(868) मुग्धा - मुग्ध करनेवाली मा ।

(869) क्षिप्रप्रसादिनी - थोडे प्रसादसे ही जल्दी प्रसन्न होनेवाली मा ।
(870) अर्न्तमुखसमाराध्या - सब वृत्तिया अन्तर्मख करके आराधित होनेवाली मा ।
(871) बर्हिमुखसुदुर्लभा - जिसकी वृत्तिया बाहरकी ओर भटकती रहती है उनके लिये दुर्लभ मा ।
(872) त्रयी - तीन प्रकारसे तीन अवस्थाओंमे प्रगट मा ।
(873) त्रिर्गनिलया - त्रिवर्ग देवताओंका घर मा ।
(874) त्रिस्था - त्रिमुर्ति (महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती) में स्थीत मा ।
(875) त्रिपुरमालिनी - श्रीचक्र श्रीयन्त्रमें छोटीचौडीसी आकृतीकी अधिष्ठात्री मा ।
(876) निरामया - रोगसे रहित मा ।
(877) निरालम्बा - अवलम्बन रहित, भक्तोंका आश्रय मा ।
(878) स्वात्मारामा - अपनेही मग्न आत्मा, आनंदित मा ।
(879) सुधासृतिः - अमृतका स्तौत या धारा रूप मा ।
(880) संसारपंकनिर्मग्नसमुध्दरणपण्डिता - संसारके कीचडमें फसे हुए जीवोंका उध्दार करनेमे कुशल मा ।
(881) यज्ञप्रिया - जिन्हे यज्ञ प्रिय है वह मा ।
(882) यज्ञकर्त्री - यज्ञ करने और करानेवाली मा ।
(883) यजमानस्वरूपिणी - यज्ञ करनेवाले यजमानका स्वरूप मा ।
(884) धर्माधारा - धर्मका आधार मा ।
(885) धनाध्यक्षा - धनकी अधिपती मा ।
(886) धनधान्यविवर्धिनी - धन और धान्य का विवर्धन करनाली मा ।
(887) विप्रप्रिया - विद्वान ब्राह्मणोंकी प्रिय है ।
(888) विप्ररुपा - विप्रोंका स्वरूप मा ।
(889) विश्वभ्रमणकारिणी - अभक्त, अज्ञानी और पशुवृत्तीके लोगोंको अनेक भ्रमोंके चक्करमे डालनेवाली मा ।
(890) विश्वग्रासा - विश्वको एकही ग्रासमे समाप्त करनेवाली मा ।
(891) विद्रुमाभा - कल्पवृक्ष स्वरूप मा ।
(892) वैष्णवी - विष्णुकी माता या वैष्णवी देवीके रुपमे मा ।
(893) विष्णुरूपिणी - विष्णुका स्वरूप मा ।
(894) अयोनिः - जिसने किसी योनीसे जन्म नही पाया वह मा ।
(895) योनिनिलया - सब योनियोंका जन्म स्थल मा ।
(896) कूटस्था - पहाडोंके झुण्डोंके बीचमै रहनेवाली मा ।
(897) कुलरूपिणी - कुलका आधार रूप मा ।
(898) वीरगोष्ठीप्रिया- वीरोंका पराक्रम भरी बातोंकी प्रिय मा ।
(899) वीरा - दिलेर, बहाद्दुर मा ।
(900) नैष्कर्म्या - भक्तोंको कर्मबन्धनसे मुक्ती देनेवाली मा ।

यह ललिता सहस्रनाम भाष्य संतश्रेष्ठ श्री माईजी महाराज जीके लिखी हुई पुस्तकोंके आधारपर किया है । श्री माई मन्दिरका पता - माई निवास, सरस्वती रस्तेके अंतीम भागपर स्थीत, सांताक्रुझ (पश्चिम), मुम्बई 400054
ललिता सहस्रनामके बारेमे अधिक जानकारीके लिये देखिये निम्न लिखीत लिंक्स -
https://mohankharkar.com/2015/09/01/god-as-mother-names-1-to-10/










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