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Tuesday 14 October 2014

Names 351 to 400


*(351) वामकेशी - सुन्दर केशोंवाली मा ।

*(352) वन्हिमण्डलवासिनी - अग्निमण्डलमें वा मूलाधार चक्रमें निवास करनेवाली मा ।

*(353) भक्तिमत्कल्पलतिका - भक्तोंके लिये कल्प वृक्षकी लताके स्वरूप मा ।

*(354) पशुपाशविमोचिनी -अज्ञानियोंको बंधनसे मुक्त करनेवाली मा ।

*(355) संहृताशेषपाखण्डा - पाखंडियोंका नाश करनेवाली मा ।

*(356) सदाचारप्रवर्तिका - सदाचारको प्रवृत्त करनेवाली मा ।

*(357) तापत्रयाग्निसंतप्तसमाल्हादानचन्द्रिका - तीन प्रकारके तापोंसे पीडित हुए अपने भक्तोंको शान्ती

प्रदान करनेवाली चन्द्रिकाके समान मा ।

*(358) तरूणी - जवानीसे भरपुर मा ।

*(359) तापसाराध्या - तपस्वियोंसे आराधित मा ।


*(360) तनुमध्या - पतली कमरवाली मा ।

*(361) तमोपहा - तमोगुणका अन्धकार दूर करनेवाली मा ।

*(362) चितिस् - बुध्दी, ज्ञान, विद्या और प्रज्ञा का स्वरूप मा ।

*(363) तत्पदलक्ष्यार्था - तत्वमसी नामक महावाक्यमे तत् शब्दसे लक्षीत हो जानेवाली मा ।

*(364) चिदेकरसरूपिणी - बुध्दीका एकरस रूप मा ।

*(365) स्वात्मानन्दलवीभूतब्रह्माद्यानन्दसंततिः - ब्रह्मादिका आनंद जिनके निजी आनंदका एक अंशमात्रही

है वह मा ।

*(366) परा - अप्रकट और कल्याण स्वरूप मा ।

*(367) प्रत्यकचितीरूपा - सबकी अन्तरात्मा रूप मा ।

*(368) पश्यन्ती - अर्थसूचक वाणी जो बाहर निकलनेसे पहले मस्तकमे घूमती है उस भाषाका या स्थितीका

स्वरूप मा ।

*(369) परदेवता - सब देवतोंसे परे ( उपर ) मा ।

*(370) मध्यमा - आरंभिक शब्द रूपी मा ।

*(371) वैखरीरूपा - अन्तके बोले हुए वाणी रूप श्बदोंकी भाषा रूपमे मा ।

*(372) भक्तमानसहंसिका - भक्तके मनमे विहार करनेवाली मानस सरोवरकी हंसिका स्वरूपमे मा ।

*(373) कामेश्वरप्राणनाडी - अपने भक्तके प्राणनाडीके स्वरूपमे मा ।

*(374) कृतज्ञा - भक्तके हरएक काम को देखनेवाली और फल देनेवाली मा ।

*(375) कामपूजिता - कामदेवसे पूजीत मा ।

*(376) श्रृंराररससंपुर्णा - श्रृंगाररस से परिपूर्ण मा ।

*(377) जया - भक्तकी जय करनेवाली मा ।

*(378) जालन्धरस्थिता - कण्ठमे स्थित मा ।

*(379) ओड्याणपीठनिलया - जो नाभी प्रदेशमे स्थित है वह मा ।

*(380) बिन्दुमण्डलवासिनी - श्रीचक्र श्रीयन्त्रके मध्यत्रिकोणमे स्थित रहनेवले बिन्दुके स्वरुपमा ।

*(381) रहोयागक्रमाराध्या - भक्त और कुण्डलिनी स्वरुप मा का जब सहसस्रार चक्रमे योग होता है तब

होनेवाले आनन्दके लिये पुजी जानेवाली मा ।

*(382) रहस्ततर्पणतर्पिता - मानसिक और गुप्तरितीसे तर्पणपर राजी होनेवाली मा ।

*(383) सद्यःप्रसादिनी - तत्काल प्रसन्न होनेवाली मा ।

*(384) विश्वसाक्षिणी - विश्वके सारे कामोंकी साक्षी स्वरूप मा ।

*(385) साक्षीवर्जिता - जो मा सबको देखती है लेकिन जिसको कोईभी नही देख सकता वह मा ।

*(386) षडंगदेवतायुक्ता - सर्वज्ञता, संतोष,स्वतन्त्रता,प्रज्ञा, अक्षरत्व और अनंतता इन छः शक्तियोंसे युक्त मा ।

*(387) षाडगुण्यपरिपूरिता - एैश्वर्य, धर्म, किर्ती, ज्ञान, श्री ओर वैराग्य से परिपूर्ण मा।

*(388) नित्यक्लीन्ना - सदा दयावान मा ।

*(389) निरूपमा - जिनकी किसीसे उपमा हो नही सकती वह मा ।


*(390) निर्वाणसुखदायिनी - मुक्तीका सुख प्रदान करनेवाली मा ।

*(391) नित्यषोडशिकारूपा - सोलह नित्यायें याने पूर्णिमा स्वरूप माईकी सोलह सहचरी रूप दासीयोंके

स्वरूपमे मा ।

*(392) श्रीकण्ठार्धशरिरीणी - श्री शिवजीके आधे शरीरमे रहनेवाली पार्वतीके स्वरूपमे मा ।

*(393) प्रभावती - तेजस्वी मा ।

*(394) प्रभारूपा - तेजकी तेजस्विताका स्वरूप मा ।

*(395) प्रसिध्दा - सब लोकोमे प्रसिद्द मा ।

*(396) परमेश्वरी - सबकी परम ईश्वरी मा ।

*(397) मूलप्रकृती - प्रकृतीका मुल कारण मा ।

*(398) अव्यक्ता - समझमे न आनेवाली तथा अत्यन्त गूढ रहकार कभी प्रकट न होनेवाली मा ।

*(399) व्यक्ताव्यक्तस्वरूपिणी -प्रकट और गुप्त स्वरूपमे रहनेवाली मा ।

*(400) व्यापिनी - सर्वव्यापक, विश्वव्यापक मा ।

संत श्री माई स्वरूप माई मार्कण्ड ( माईजी ) के पुस्तकोंपर आधारित यह यह सहस्रनाम भाष्य है । ईन

सहस्रनामोंकी अधिक विस्तृत जानकारीके लिए देखिए निम्न लींक्स -



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Saturday 27 September 2014

Names 301 to 350



(301) र्‍हींकारी - नम्रता पैदा करनेवाली मा । र्‍हीं बीज मन्त्रके जपनेपर विद्या और ज्ञान देनेवाली मा ।
(302) र्‍हींमती - अपने भक्तको नम्रता आदि विचार और मति देनेवाली मा ।
(303) ह्रद्या - भक्तके ह्रदयके मालिक मा ।भक्तके ह्रृदयमे रहनेवाली मा ।
(304) हेयोपादेयवर्जिता - स्वीकार या अस्वीकारके भले या बुरेपनकी कल्पनासे परे मा ।
(305) राजराजार्चिता - राजाओंके राजाओंसे आराधित मा ।
(306) राज्ञी - राणियोंकी राणी मा ।
(307) रम्या - अति रमणी मा ।
(308) राजीवलोचना - कमल या हिरण जैसे आखोंवाली मा ।
(309) रंजनी - ह्रृदयको प्रसन्न करनेवाली मा ।
(310) रमणी - आनन्द देनेवाली मा ।
(311) रस्या - आनन्द रसका अनुभव करानेवाली मा ।
(312) रणत्किंकिणीमेखला - अपने कमरबन्दके मणीयोंके घण्टींयोंके बजनेसे भक्तोंको मुग्ध करनेवाली मा ।
(313) रमा - धन देनेवाली लक्ष्मी स्वरूपमे मा ।
(314) राकेन्दुवदना - पोर्णिमाके चन्द्रके मुखकमल जैसी मा 
(315) रतिरुपा - रतिका स्वरूप मा।
(316) रतिप्रिया - प्रेम करनेवाली और प्रेमीयोंकी प्रिय मा ।
(317) रक्षाकरी - रक्षा करनेवाली मा ।
(318) राक्षसघ्नी - दुष्ट वृत्तीया और षडरिपु राक्षसोंका नाश करनेवाली मा ।
(319) रामा - संसारके सर्व स्त्रीयों, वृध्द, सौन्दर्यहीन आदि भोली स्त्रीयोंके स्वरूपमे मा ।
(320) रमणलंपटा - अपने भक्तोंके साथ खेलनेमे बेपरवाह हो जानेवाली मा ।
(321) काम्या - जिस वस्तुकी कामना करनेसे जीव अपना जीवन जीता है उस कामना के स्वरूप मा ।
(322) कामकलारूपा - कामना और कलाका स्वरूप मा ।
(323) कदम्बकुसुमप्रिया - कदंबके फुलोंसे प्रसन्न होनेवाली मा ।
(324) कल्याणी - भक्तोंका कल्याण करनेवाली मा ।
(325) जगतीकन्दा - जगतका बीजरूप मा ।
(326) करूणारससागरा - करूणारसका समुद्र मा ।
(327) कलावती - सब कलाओंसे परिपूर्ण मा ।
(328) कलालापा - बाते करनेमे कुशल मा।
(329) कांता - कांति और सुंदरताका स्वरूप मा ।
(330) कादंबरीप्रिया - भक्तोंसे कल्पित प्रेमकी शौकीन मा ।
(331) वरदा - वर देने वाली मा ।
(332) वामनयना - भक्तोंको प्रेमसे तिरछी निगाहोंसे देखनेवाली मा ।
(333) वारूणीमदविव्हला - जिनकी कृपासे, शेषनाग पृथ्वीके अनेक पापरूपी भारको उठानेपरभी व्याकुल नही होता , वह मा ।
(334) विश्वाधिका - सारे वीश्वसे परे मा ।
(335) वेदविद्या- विदविद्याका स्वरूप, वेदविद्या सिखानेवाली और उसके ज्ञानको पुर्ण करनेवाली मा ।
(336) विन्ध्याचलनिवासिनी - विन्ध्याचल पर्वतोंपर निवास करनेवाली मा ।
(337) विधात्री - सबकी विधाता मा । जीवोंको उनके संकल्पके अनुसार, उनकी अंतीम गती देनेवाली मा ।
(338) वेदजननी - वेदोंकी जननी मा ।
(339) विष्णुमाया - सर्वव्याप्त प्रेमस्वरूप मा ।
(340) विलासिनी - भक्तोंसे विलास करनेवाली मा ।
(341) क्षेत्रस्वरूपा - शरीरके सब अवयवोमें चैतन्य स्वरूप मा ।
(342) क्षेत्रेशी - शरीरके सब अवयवोंकी जीवात्मा (शिव) स्वरुपमे मा ।
(343) क्षेत्रक्षेत्रज्ञपालिनी - जीव और शिव (आत्मा)का पालनपोषण करनेवाली मा ।
(344) क्षयवृध्दीविनिरमुक्ता - घटने  और बढनेसे मुक्त मा ।
(345) क्षेत्रपालसमर्चिता - विश्वके पालक क्षेत्रपालसे आराधित मा ।
(346) विजया - भक्तको विजय दिलानेवाली मा ।
(347) विमला - निर्मल मा । भक्तके चरित्रको निर्मल बनानेवाली मा ।
(348) वन्द्या - पूजनीय मा ।
(349) वन्दरूजनवत्सला - वन्दन करनेवाले भक्तपर वात्स्यल्य भाव रखनेवाली मा ।
(350) वाग्वादिनी - भक्तोंके मुखमे सरस्वतीके रूपमे निवास करनेवाली मा ।

यह ललिता सहस्रनाम भाष्य संत श्री माईजी महाराजकी लिखी हुई पुस्तकोंके आधारपर कीया है । अधिक जानकारीके लिये कृपया देखे -
http://universalreligionmaiism.blogpot.in/ 

 श्री ललितासहस्रनामों का अधिक विवरण देखनेकेलिए : -
http://maiism.blogpot.com/
 तथा अधिक जानकारीके लिये कृपया देखे -
http://mohankharkar.wordpress.com/
http://www.tumblr.com/blog/mohankharkar3

Saturday 13 September 2014

Names 251 to 300




(251) चिन्मयी - चैतन्यरूप, ज्ञानरूप, बोधरूप मा ।
(252) परमानन्दा - परम आनन्द देनेवाली मा ।
(253) विज्ञानघनरूपिणी - चैतन्यका सार स्वरूप मा । शास्त्रोमे न लिखा हो एैसा अनुभव जो कि मुक्त गुरूद्वारा दिया वह गुप्त ज्ञान एैसे विज्ञानका सार स्वरूप मा ।
(254) ध्यानध्यातृध्येयरूपा - ध्यान , ध्यान करनेवाला और ध्येय इन तीनोंके स्वरूप मा ।
(255) धर्माधर्मविवर्जिता -धर्म और अधर्मके बंधनसे दूर और अपने भक्तोंको परखनेवाली मा ।
(256) विश्वरूपा - सारा विश्व जिनका स्वरूप है वह मा ।
(257) जागरिणी - जागृत अवस्थामें रक्षा करनेवाली मा ।
(258) स्वपन्ती - स्वप्न अवस्थामे जगतको संभालनेवाली मा ।
(259) तैजसात्मिका - स्वप्न अवस्थामें जीवोंकी आत्मा मा । जिनके कारण स्वप्न अवस्था जीव को प्राप्त होती है वह तेजस स्वरूप मा ।
(260) सुप्ता - निद्रा अवस्थामे जीवकी देखभाल करनेवाली मा ।
(261) प्रज्ञात्मिका - निद्रा अवस्थामे सब जीवोंका रूप मा ।
(262) तुर्या - समाधीकी अवस्थामे जीवकी रक्षा करनेवाली मा ।
(263) सर्वावस्थाविवर्जिता - सभी अवस्थाओंसे परे मा ।
(264) सृष्टिकर्त्री - सृष्टी उत्पन्न करनेवाली मा ।
(265) ब्रह्मरूपा - ब्रह्मका स्वरूप मा ।
(266) गोप्त्री - रक्षा करनेवाली मा ।
(267) गोविन्दरूपिणी - गोविन्द ( विक्ष्णु ) रूपिणी मा ।
(268) संहारिणी - फिरसे सृष्टीको उत्पन्न करनेके लिये सृष्टीका संहार करनेवाली मा ।
(269) रूद्ररूपा - रूद्र ( शिव ) का रूप मा ।
(270) तिरोधानकरी - प्रलय करनेवाली मा ।
(271) ईश्वरी - ईश्वररूप मा ।
(272) सदाशिवा - सदाशिवका स्वरूप मा ।
(273) अनुग्रहदा - अनुग्रह ( कृपा ) करनेवाली मा ।
(274) पंचकृत्यपरायणा - सृष्टी, स्थिती, नाश, प्रलय औैर पुर्नप्रसव इन पाच प्रकृतीकी क्रीयाओंको करनेवाली मा ।
(275) भानुमण्डलमध्यस्था - सूर्यमण्डलके बीचमें स्थित मा ।
(276) भैरवी - भक्तोंको अधिकसे अधिक पुरूषार्थ करनेकी शक्ती देनेवाली मा ।
(277) भगमालिनी - एैश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान , वैराग्य इन छः भगरूप पुष्पोंकी माला पहनी हुई मा ।
(278) पद्मासना - कमलके आसनपर स्थित मा ।
(279) भगवती - उत्पत्ती, लय, विद्या, अविद्या, उत्तम गती, अधोगती इन छ अवस्थाओंकी व्यवस्था करनेवाली मा ।
(280) पद्मनाभसहोदरी - विष्णुकी बहन मा । भगवान शंकरकी गौरी जिनका मुख्य अंश है वह मा ।
(281) उन्मेषनिमिषोत्पन्नविपन्नभुवनावली - निमेषमात्रमेही कई ब्रहमाण्डोंको उत्पन्न और लय करनेवाली मा।
(282) सहस्रशीर्षवदना - हजारो मस्तकोवाली मा ।
(283) सहस्राक्षी - अपने भक्तोंको हजार आखोंसे (प्रेमसे) देखनेवाली मा ।
(284) सहस्रपात् -अपने भक्तकी रक्षा करनेके लिये हजारो पैरोंसे दौड कर आनेवाली मा ।
(285) आब्रह्मकीटजननी - क्षुद्र कीडेसे ब्रह्मातक सभीकी जननी मा
(286) वर्णाश्रमविधायिनी - कर्म, स्वभाव अनुरूप जाती, वर्ण और गृहस्थादी आश्रमोंकी कल्याणकारक व्यवस्था करनेवाली मा ।
(287) निजाज्ञारुपनिगमा - शास्त्रोमें सबके लिये आज्ञा लिखनेवाली मा 
(288) पुण्यापुण्यफलप्रदा - पाप और पुण्यका फल देनेवाली मा ।
(289) श्रुतिसीमन्तसिन्दूरीकृतपादाब्जधूलिका - श्रुती और स्मृती जिनके पैरोंकी धुल अपने मस्तकोंके उपर सिन्दुरकी तरह लगाती है वह मा ।
(290) सकलागमसंदोहशुक्तिसंपुटमौक्तिका - भिन्न भिन्न धर्मोंके शास्त्रोंके रहस्योंको जिसने अपनी नथकी मोतीमे भरकर पहनकर रखे है वह मा । 
(291) पुरूषार्थप्रदा -  धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये पुरूषार्थ देनेवाली मा ।
(292) पूर्णा - स्वयं पूर्ण और अपने भक्तोंको पूर्ण बनानेवाली मा ।
(293) भोगिनी -भोगनेकी इच्छा और शक्ती उत्पन्न करनेवाली मा 
(294) भुवनेश्वरी - दश महाविद्याओमें भुवनेश्वरीके रूपमें मा ।
(295) अम्बिका - इच्छाशक्तीरूप जगतकी मा ।
(296) अनादिनिधना - आदि और अन्त रहित मा ।
(297) हरिब्रह्मेन्द्रसेविता -हरि, ब्रह्मा और इन्द्र से सेवित मा ।
(298) नारायणी - आदी माता मा ।
(299) नादरूपा - आकाशमें स्थित शब्द तन्मात्रा रुप मा । ।
(300) नामरूपविवर्जिता - नाम और रूपसे परे मा । 

संतश्रेष्ठ श्रीमाईजी महाराजकी पुस्तकोंके आधारपर यह ललिता सहस्रनामके अर्थ लिखे है । अधिक जानकारीके लिये कृपया देखे 
https://mohankharkar.com/2015/09/01/god-as-mother-names-1-to-10/
http://www.twitter.com/jayashreekharka 



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